नीति के दोहा
धरम करम के सार हे, जिये मरे के नेंग ।
जीयत भर करले करम, नेकी रद्दा रेंग ।।
करम तोर पहिचान हे, करम तोर अभिमान ।
जइसे करबे तैं करम, तइसे पाबे मान ।।
करे बुराई आन के, अपनो अवगुण देख ।
धर्म जाति के आदमी, गलती अपने सरेख ।।
पथरा लकड़ी चेंदरा, अउ पोथी गुरू नाम ।
आस्था के सब बिम्ब हे, माने से हे काम ।।
आस्था टोरे आन के, डफली अपन बजाय ।
तोरो तो कुछु हे कमी, ओला कोन बताय ।।
मनखे ला माने कहाँ, मनखे मनखे एक ।
ऊँच-नीच घिनहा बने, सोच धरे हस टेक ।।
बदला ले के भाव ले, ओखी जाथे बाढ़ ।
भुले-बिसरे भूल के, ओखी झन तैं काढ़ ।।
-रमेश चौहान
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