सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

कतका झन देखे हें-

भेड़िया धसान

212 222 221 222 12 कोन कहिथे का कहिथे भीड़ जानय नही बुद्धि  ला अपने ओही बेर तानय नही भेड़िया जइसे धसथे आघू पाछू सबो एकझन खुद ला मनखे आज मानय नही

समय म निश्चित बदलाव आथे

हर चढ़ाव के बाद फिसलाव आथे हर बहाव के बाद ठहराव आथे बंद होय चाहे चलय ये घड़ी हा हर समय म निश्चित बदलाव आथे

मुकतक (पीये बर पानी मिलत नई हे)

ऊपर वाले हा ढिलत नई हे हमरे भाखा ओ लिलत नई हे सेप्टिक बर आवय कहां ले पीये बर पानी मिलत नई हे -रमेश चौहान

मुक्तक (दूसर ला राखे बर चूरत हस)

अपने भाई ला बेघर करके बैरी माने तैं बंदूक धरके दूसर ला राखे बर चूरत हस अपने भेजा मा भूसा भरके -रमेश चौहान

हे गणनायक

हे गणनायक देव गजानन (मत्तगयंद सवैया) हे गणनायक देव गजानन राखव राखव लाज ल मोरे । ये जग मा सबले पहिली प्रभु भक्तन लेवन नाम ल तोरे । तोर ददा शिव शंकर आवय आवय तोर उमा महतारी ।। कोन इहां तुहरे गुण गावय हे महिमा जग मा बड़ भारी । राखय शर्त जभे शिवशंकर अव्वल घूमय सृष्टि ल जेने । देवन मा सबले पहिली अब देवन नायक होहय तेने ।। अव्वल फेर करे ठहरे प्रभु सृष्टिच मान ददा महतारी । कोन इहां तुहरे गुण गावय हे महिमा जग मा बड़ भारी ।। काम बुता शुरूवात करे बर होवय तोर गजानन पूजा । मेटस भक्तन के सब विध्न ल विघ्नविनाशक हे नहि दूजा ।। बुद्धि बने हमला प्रभु देवव हो मनखे हन मूरख भारी । कोन इहां तुहरे गुण गावय हे महिमा जग मा बड़ भारी ।

तीजा

  मत्तगयंद सवैया हे चहके बहिनी चिरई कस हॉसत गावत मानत तीजा । सोंध लगे मइके भुइया बड़ झोर भरे दरमी कस बीजा ।। ये करु भात ह मीठ जनावय डार मया परुसे जब दाई । लाय मयारु ददा लुगरा जब छांटत देखत हाँसय भाई ।।

तीजा-पोरा

आवत रहिथन मइके कतको, मिलय न एक सहेली । तीजा-पोरा के मौका मा, आथे सब बरपेली ।। ओही अँगना ओही चौरा, खोर-गली हे ओही । आय हवय सब सखी सहेली, लइकापन ला बोही । हमर नानपन के सुरता ला, धरे हवन हम ओली । तीजा-पोरा मा जुरिया के, करबो हँसी ठिठोली ।। तरिया नरवा घाट घठौंदा, जुरमिल के हम जाबो । जिनगी के चिंता ला छोड़े, लइका कस सुख पाबो ।। अपन-अपन सुख दुख ला हेरत, हरहिंछा बतियाबो । तीजा-पोरा संगे रहिके, अपन-अपन घर जाबो ।

पानी पानी अब चिहरत हस, सुनय कहां भगवान

नदिया छेके नरवा छेके, छेके हस गउठान । पानी पानी अब चिहरत हस, सुनय कहां भगवान ।। डहर गली अउ परिया छेके, छेके सड़क कछार । कुँवा बावली तरिया पाटे, पाटे नरवा पार ।। ऊँचा-ऊँचा महल बना के, मारत हवस शान । पानी पानी अब चिहरत हस, सुनय कहां भगवान ।। रूखवा काटे जंगल काटे, काटे हवस पहाड़ । अपन सुवारथ सब काम करे, धरती करे कबाड़ ।। बारी-बखरी धनहा बेचे, खोले हवस दुकान । पानी पानी अब चिहरत हस, सुनय कहां भगवान ।। गिट्टी पथरा अँगना रोपे, रोपे हस टाइल्स । धरती के पानी ला रोके, मारत हस स्टाइल्स ।। बोर खने हस बड़का-बड़का, पाबो कहिके मान । पानी पानी अब चिहरत हस, सुनय कहां भगवान ।।

कइसे जी भगवान

जर भुंजा गे खेत मा, बोये हमरे धान । तन लेसागे हे हमर, कइसे जी भगवान ।। तरसत हन हम बूंद बर, धरती गे हे सूख । बरस आय ये तीसरा, पीयासे हे रूख ।। ठोम्हा भर पानी नही, कइसे रखब परान । तन लेसागे हे हमर, कइसे जी भगवान ।। खेत-खार पटपर परे, फूटे हवय दरार । नदिया तरिया नल कुँवा, सुख्खा हावे झार ।। हउला बाल्टी डेचकी, मूंदे आँखी कान । तन लेसागे हे हमर, कइसे जी भगवान ।। बादर होगे दोगला, मनखे जइसे आज । चीं-ची चिरई मन कहय, पापी मन के राज ।। मनखे हावय लालची, बेजाकब्जा तान । तन लेसागे हे हमर, कइसे जी भगवान ।।

हे जीवन दानी, दे-दे पानी

हे करिया बादर, बिसरे काबर, तै बरसे बर पानी । करे दुवा भेदी, घटा सफेदी, होके जीवन दानी ।। कहूं हवय पूरा, पटके धूरा, इहां परे पटपर हे । तरसत हे प्राणी, मांगत पानी, कहां इहां नटवर हे ।। हे जीवन दानी, दे-दे पानी, अब हम जीबो कइसे । धरती के छाती, खेती-पाती, तरसे मछरी जइसे ।। पीये बर पानी, आँखी कानी, खोजय चारो कोती । बोर कुँआ तरिया, होगे परिया,  कहां बूंद भर मोती ।।

भारत भुईंया रोवत हे

आजादी के माला जपत काबर उलम्बा होवत हे एक रूख के थांघा होके, अलग-अलग डोलत हे एक गीत के सुर-ताल मा, अलगे बोली बोलत हे देश भक्ति के होली भूंज के होरा कस खोवत हे विरोध करे के नाम म मूंदें हे आँखी-कान अपने देष ला गारी देके मारत हावय शान राजनीति के गुस्सा ला देशद्रोह म धोवत हे अपन अधिकार बर घेरी-घेरी जेन हा नगाड़ा ढोकय कर्तव्य करे के पारी मा डफली ला घला रोकय आजादी के निरमल पानी मा जहर-महुरा घोरत हे गांव के गली परीया कतका झन मन छेके हे देश गांव के विकास के रद्दा कतका झन मन रोके हे अइसन लइका ला देख-देख भारत भुईंया रोवत हे

आगे सावन आगे ।

छागे छागे बादर करिया, आगे सावन आगे । झिमिर-झिमिर जब बरसे बदरा, मन मोरो हरियागे ।। हरियर हरियर डोली धनहा, हरियर हरियर परिया । नदिया नरवा छलकत हावे, छलकत हावे तरिया ।। दुलहन जइसे धरती लागय, देख सरग बउरागे । झिमिर-झिमिर जब बरसे बदरा, मन मोरो हरियागे ।। चिरई-चिरगुन गावय गाना, पेड़-रुख हा नाचय । संग मेचका झिंगुरा दुनो, वेद मंत्र ला बाचय ।। साज मोहरी डफड़ा जइसे, गड़गड़ बिजली लागे । झिमिर-झिमिर जब बरसे बदरा, मन मोरो हरियागे ।। नांगर-बइला टेक्टर मिल के, करे बियासी धनहा । निंदा निंदय बनिहारिन मन, बचय नही अब बन हा ।। करे किसानी किसनहा सबो, राग-पाग ला पागे । झिमिर-झिमिर जब बरसे बदरा, मन मोरो हरियागे ।।

ढल देश के हर ढंग मा

चल संग मा चल संग मा, ढल देश के हर ढंग मा । धरती जिहां जननी हवे, सुख बांटथे हर रंग मा ।। मनका सबो गर माल के, सब एक हो धर के मया । मनखे सही मनखे सबो, कर लौ बने मनखे दया ।। भटके कहां घर छोड़ के, धर बात ला तैं आन के । सपना गढ़े हस नाश के, बड़ शत्रु हमला मान के ।। हम संग मा हर पाँव मा, मिल रेंगबो हर हाल मा । घर वापसी कर ले अभी, अब रेंग ले भल चाल मा ।। अकड़े कहूं अब थोरको, सुन कान तैं अब खोल के । बचबे नहीं जग घूम के, अब शत्रु कस कुछु बोल के ।। कुशियार कस हम फाकबो, हसिया धरे अब हाथ मा । कांदी लुये कस बूचबो, अउ लेसबो अब साथ मा ।।

बदरा, मोरे अँगना कब आबे

जोहत-जोहत रद्दा तोरे, आँखी मोरे प थरा गे । दुनिया भर मा घूमत हस तैं, मोरे अँगना कब आबे । ओ अषाढ़ के जोहत-जोहत, आसो के सावन आगे । नदिया-तरिया सुख्खा-सुख्खा, अउ धरती घला अटागे । रिबी-रिबी लइका मन होवय, बोरिंग तीर मा जाके । घेरी- घेरी दाई उन्खर, सरकारी नल ला झाके । बूंद-बूंद पानी बर बदरा, बन चातक तोला ताके । थूकव बैरी गुस्सा अपने, अब बरसव रंग जमाके ।। खेत-खार हा सुख्खा-सुख्खा, नांगर बइला बउरागे । धान-पान के बाते छोड़व, कांदी-कचरा ना जागे ।। आन भरोसा कब तक जीबो, करजा-बोड़ी ला लाके । पर घर के चाउर भाजी ला, हड़िया चूल्हा हा झाके । चाल-ढ़ाल ला तोरे देखत, चिरई-चिरगुन तक हापे । गुजर-बसर अब कइसे होही, तन-मन हा मोरो कापे ।। जीवन सब ला देथस बदरा, काल असन काबर झाके । थूकव बैरी गुस्सा अपने, अब बरसव रंग जमाके ।।

मोर सपना के भारत

मोरे सपना के भारत मा, हर हाथ म हे काम । जाति-धर्म के बंधन तोड़े, मनखे एक समान ।। लूट-छूट के रीति नई हे, सब बर एके दाम । नेता होवय के मतदाता, होवय लक्ष्मण राम ।। प्रांत-प्रांत के सीमा बोली, खिचय न एको डाड़ । नदिया जस सागर मिलय, करय न चिटुक बिगाड़ ।। भले करय सत्ता के निंदा, छूट रहय हर हाल । फेर देश ला गारी देवय, निछब ओखरे खाल ।। जेन देश के चिंता छोड़े, अपने करय विचार । मांगय झन अइसन मनखे, अपन मूल अधिकार ।। न्याय तंत्र होय सरल सीधा, मेटे हर जंजाल । लूटय झन कोनो निर्धन के, खून पसीना माल ।। लोकतंत्र के परिभाषा ला, सिरतुन करबो पोठ । वोट होय आधा ले जादा, तभे करय ओ गोठ ।। संविधान के आत्मा जागय, रहय धर्म निरपेक्ष । आंगा भारू रहय न कोनो, टूटय सब सापेक्ष ।। मौला पंड़ित मानय मत अब, नेता अउ सरकार । धरम-करम होवय केवल, जनता के अधिकार । देश प्रेम धर्म बड़े सबले, सब बर जरूरी होय । देश धर्म ला जे ना मानय, देश निकाला होय ।।

मुरकेटव ओखर, टोटा ला तो धर के

थपथपावत हे, बैरी आतंकी के पीठ मुसवा कस बइठे, बैरी कोने घर के। बिलई बन ताकव, सबो बिला ला झाकव मुरकेटव ओखर, टोटा ला तो धर के । आघू मा जेन खड़े हे, औजार धरे टोटा मा ओ तो पोसवा कुकुर,  भुके बाचा मान के । धर-धर दबोचव, मरघटिया बोजव जेन कुकर पोसे हे, ओला आघू लान के ।।

मैं छत्तीसगढ़िया हिन्दूस्तानी अंव

मैं छत्तीसगढ़िया हिन्दूस्तानी अंव महानदी निरमल गंगा के पानी अंव मैं राजीम जगन्नाथ के इटिका प्रयागराज जइसे फुरमानी अंव मैं भोरमदेव उज्जैन खजुराहो काशी के अवघरदानी अंव मैं बस्तर दंतेवाड़ा दंतेश्वरी भारत के करेजाचानी अंव मैं भिलाई फौलादी बाजू भारत भुईंया के जवानी अंव मोर कका-बबा जम्मो पीढ़ी के मैं रोवत-हँसत कहानी अंव जात-पात प्रांतवाद ले परे मैं भारत माता के जुबानी अंव

किसनहा गाँव के

नांगर बइला फांद, अर्र-तता रगियाये जब-जब धनहा मा, किसनहा गाँव के । दुनिया के रचयिता, जग पालन करता दुनिया ला सिरजाये, ब्रम्हा बिष्णु नाम के ।। धरती दाई के कोरा, अन्न धरे बोरा-बोरा दूनो हाथ उलचय, किसान के कोठी मा । तर-तर बोहावय, जब-तक ओ पसीना तब-तक जनाही ग, स्वाद तोर रोटी मा ।।

शौचालय बैरी हा, दुखवा बोवत हे

डोहारत-डोहारत, घर भर बर पानी मोरे कनिहा-कुबर, दाई टूटत हवे । खावब-पीयब अउ, रांधब-गढ़ब संग बाहिर-बट्टा होय ले, प्राण छूटत हवे ।। डोकरा-डोकरी संग, लइका मन घलोक घर म नहाबो कहि कहि पदोवत हे। कइसे कहंव दाई, नाम सफाई के धरे शौचालय बैरी हा, दुखवा बोवत हे ।।

मोर दूसर ब्लॉग