मोरे सपना के भारत मा, हर हाथ म हे काम । जाति-धर्म के बंधन तोड़े, मनखे एक समान ।। लूट-छूट के रीति नई हे, सब बर एके दाम । नेता होवय के मतदाता, होवय लक्ष्मण राम ।। प्रांत-प्रांत के सीमा बोली, खिचय न एको डाड़ । नदिया जस सागर मिलय, करय न चिटुक बिगाड़ ।। भले करय सत्ता के निंदा, छूट रहय हर हाल । फेर देश ला गारी देवय, निछब ओखरे खाल ।। जेन देश के चिंता छोड़े, अपने करय विचार । मांगय झन अइसन मनखे, अपन मूल अधिकार ।। न्याय तंत्र होय सरल सीधा, मेटे हर जंजाल । लूटय झन कोनो निर्धन के, खून पसीना माल ।। लोकतंत्र के परिभाषा ला, सिरतुन करबो पोठ । वोट होय आधा ले जादा, तभे करय ओ गोठ ।। संविधान के आत्मा जागय, रहय धर्म निरपेक्ष । आंगा भारू रहय न कोनो, टूटय सब सापेक्ष ।। मौला पंड़ित मानय मत अब, नेता अउ सरकार । धरम-करम होवय केवल, जनता के अधिकार । देश प्रेम धर्म बड़े सबले, सब बर जरूरी होय । देश धर्म ला जे ना मानय, देश निकाला होय ।।