ये हमर तो देश संगी, घात सुघ्घर ठांव हे ।
हे हिमालय हा मुकुट कस, धोय सागर पांव हे ।
फूल बगिया के बने हे, वेष भाषा सब धरम ।
एक गठरी कस हवन हम, ये हमर आवय मरम ।।
देश गांधी के पुजारी, हे अराधक शांति के ।
बोस नेताजी कहाथे, देवता नव क्रांति के ।।
हे भगत शेखर सरीखे, वीर बलिदानी हमर ।
जूझ के होगे समर मा, जेन मन हा तो अमर ।।
खून कतका के गिरे हे, देश के पावन चरण ।
तब मिले हे मुक्ति हमला, आज ओखर याद करन ।।
सोच ऊखर होय पूरा, काम अइसन हम करन ।
भेट होही गा बड़े ये, देश बर हम तो जियन ।।
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