छोड़ दारु के फेशन, हे बड़ नुकसान । फेशन के चक्कर मा, हस तैं अनजान ।। नशा नाश के जड़ हे, तन मन ला खाय । कोन नई जानय ये, हे सब भरमाय ।। दारु नशा ले जादा, फेशन हे आज । पढ़े-लिखे अनपढ़ बन, करथे ये काज।। कोन धनी अउ निर्धन, सब एके हाल । मनखे-मनखे चलथे, दरुहा के चाल ।। नीत-रीत देखे मा, दोषी सरकार । चाल-चलन मनखे के, रखय न दरकार ।। -रमेश चौहान
छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह आपरेशन एक्के घॉंव भाग-1
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धन गौरी के लाल गणपति धन गौरी के लाल गणपति, सौंहत ठाढ़े मोर दुवार। जेकर
नित आशीष ले पायेन, जग के सुग्घर मया दुलार।। रोज बिहनिया साँझ मंझनिया,
तोरेच सुरता…
5 दिन पहले