गजल बहर 2122 2122 2122 2122 काम चाही काम चाही काम चाही आदमी ला काम करके हाथ मा तो दाम आही आदमी ला काम ले तो आदमी के मान अउ सम्मान हे जेब खाली होय संगी कोन भाही आदमी ला कोढ़िया ला कोन भाथे कोन खाथे रोज गारी दाम मिलही जब नता मा तब सुहाही आदमी ला लोभ नो हय मोह नो हय काम जरूरी हे जिये बर साँस बर जइसे हवा हे ये जियाही आदमी ला छोड़ फोकट के धरे के लोभ अपने काम मांगव लोभ फोकट के धरे मा लोभ खाही आदमी ला काम दे दौं काम दे दौं भीख झन दौं थोरको गा ये बुता हर पोठहर मनखे बनाही आदमी ला सिख हुनर तैं काम के गा तब न पाबे काम तैं हा लाख पोथी ले बने ये काम लाही आदमी ला -रमेश चौहान
समृद्ध बस्तर, शोषित बस्तर- श्रीमती शकुंतला तरार
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श्रीमती शकुंतला तरार,एक ऐसी कवयित्री जो बस्तर में जन्मीं और बस्तर को ही
अपनी कलम का केन्द्र बनाया।सोचिए — जिस धरती पर जन्म हुआ, उसी पर इतनी गहराई
से लिखा क...
1 दिन पहले