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कतका झन देखे हें-

धनी अगोरा तोर हे

कइसे काटव मैं भला, अम्मावस के रात । आंखी बैरी हा कहय, कब होही परभात ।। कतका जुगनू चांदनी, चमकत करे उजास । कुलुप अंधियारी लगय, चंदा बिना अगास ।। सुरता के ओ धुंधरा, बादर बनके छाय । आंखी ले पानी झरे, सावन झड़ी लगाय ।। पैरी बाजय गोड़ के, गरज घुमर के घोर । चम चम बिजली कस करे, माथे बिंदी मोर ।। गरू लगय अपने बदन, गहना ले धंधाय । धनी अगोरा तोर हे, मोरे मन चिल्लाय ।। -रमेश चौहान

माने मा पथरा घला

माने मा पथरा घला, बन जाथे भगवान । श्रद्धा अउ विश्वास बिन, ईश्वर हे पाषान ।। दाई के हर ठांव मा, बाजे मांदर ढोल । एक बार मां बोल ले, अपन करेजा खोल ।। मनखे मनखे एक हे, ईश्वर के सब पूत । ऊॅंच नीच मत मान तै, मान मत छुवा छूत ।। बिना गोड़ के रेंगथें, सुन लेथे बिन कान । काम करय बिन हाथ के, बोलय बिना जुबान ।। लकलक लकलक हे करत, परम दिव्य ओ रूप । खप्पर हे अंगार कस, जग जननी भव भूप ।। गाड़ा-गाड़ा जोहार हे, हे जग जननी तोर । तोरे दर मा आय हन, बिनती सुन ले मोर ।। नाश करे बर पाप के, मां काली बन आय । अइसन दाई देख के, लइका सब डरराय ।

पितर पाख

पितर पाख मा देवता, पुरखा बन आय । कोनो दाई अउ ददा, कोनो बबा कहाय ।। श्रद्धा अउ विश्वास मा, होवय नही सवाल । अपन अपन आस्था हवय, काबर करे बवाल ।। हरियर हरियर पेड़ मा, पानी नई पिलोय । मरे झाड़ मा तैं अभे, हउला भरे रिकोय ।। बारे न दिया रात मा, दिन म करे अंजोर । बइहा पूरा देख के, तउरे ल सिखे घोर ।। अपने पहिली प्यार ला, भूलय ना संसार । तोरे दाई के मया, आवय पहिली प्यार ।। रंग रंग के हे मया, एक रंग झन देख । सात रंग अउ सात सुर, दुनिया रखे समेख ।। नारी के नारी मनन, समझे कहां सुभाव । सास बहु मन गोठ मा, कर डारे हे घाव ।। दाई के ओ बेटवा, बाई के सिंदूर । जेन रंग ला वो धरे, रंगे हाथ जरूर ।। नारी ले परिवार हे, नारी ले घर-द्वार । चाहे ओ हर जोर लय, चाहे रखय उजार ।। सास ससुर दाई ददा, बनके करे दुलार । बहू घला बेटी असन, करय उन्हला प्यार ।। बने रहय विश्वास हा, आस्था रहय सजोर । श्रद्धा के ये श्राद्ध हा, दया करय पुरजोर ।। -रमेश चौहान

अब तो बांटा तोर हे

शान रहिस जे काल के, रहिस हमर पहिचान । नंदावत वो चीज मा, कइसे डारी जान ।। कतको बरजे डोकरा, माने नही जवान । जुन्ना डारा छोड़ के, टूटथे नवा पान ।। गोठ नवा जुन्ना चलय, जइसे के दिन रात । अपन अपन हा पोठ हे, जेखर सुन ले बात ।। दुनिया के बदलाव ला, आँखी खोल निटोर । ओही चंदा अउ सुरूज, ओही धरती तोर ।। अपन रीति रिवाज धरे, पुरखा आय हमार । अब तो बांटा तोर हे, ऐला तैं सम्हार ।।

शिक्षक दिवस पर दोहे

होय एक शिक्षक इहां, हमर राष्‍ट्रपति देश्‍ा । अब्बड़ ज्ञानी ओ रहिस, सादा ओखर वेष्‍ा ।। राधा कृष्‍णन नाम के, सर्वपली पहिचान । ज्ञानी दर्शन श्‍ाास्त्र के, जानय मनोविज्ञान ।। शिक्षण विषय मा डूब के, देवय ओ हा ज्ञान । ऐही गुण ले पाय हे, कई कई सम्मान । आज ओखर जनम दिन, कोटि कोटि परनाम । शिक्षक मन ले प्रार्थना, करव बने गा का म ।।

अइसन सुंदर तैं दिखे

जिंस पेंट फटकाय के, निकले जब तैं खोर । लिच लिच कनिहा हा करे, ऐ ओ गोरी तोर ।। देख देख ये रेंगना, कउंवा करें न कांव । मुक्का होगे मंगसा, परे तोर जब छांव ।। करिया बादर छाय हे, चेथी मा तो तोर । नील कमल हा हे खिले, तोरे आंखी कोर ।। लाल फूल दसमत खिले, पा के तोरे ओट । नाजुक होगे गाल हा, केश करे जब चोट ।। दूनो भौ के बीच मा, चंदा आय लुकाय । सुरूज अपन ओे रोशनी, तोरे मुॅह ले पाय ।। अइसन सुंदर तैं दिखे, मिले नही उपमान । जेने उपमा ला धरॅंव, होथे तोरे अपमान ।।

मनखे मनखे बाट

1. जतका महिमा हे कहे, गुरू मन के सब वेद ।          एक्को लक्षण ना दिखय, आज होत हे खेद ।। 2. आत्म ज्ञान ला छोड़ के, अपने नाम रटाय ।          दान-मान ला पाय के, कोठी बड़े बनाय ।। 3. आत्म-ज्ञान काला कथे, हमला कोन बताय ।         कहां आत्म ज्ञानी हवय, हमला कोन लखाय ।। 4. ज्ञान हवे का ओखरे, जाने गा भगवान ।          बड़का ओखर ले कहां, जग मा हे धनवान ।। 5. अपन धरम ला काट के, गढ़े हवे नव पंथ ।         जेला चेला मन कहय, नवाचरण के कंथ ।। 6. जेन पेड़ के डार हे, जर ल ओखरे काट ।         संत घला कहावत हे, मनखे मनखे बाट।।

करे हिलोर हृदय मा

करे हिलोर हृदय मा, तोर मया हा धूम । मैं भवरा तैं फूलवा, नाचत हॅंव मैं झूम ।। तोर मया हा साॅस हे, पुरवाही म समाय । देखत तोरे चेहरा, पीरा सबो नसाय ।। मोरे तन मन तोर हे, जीनगी घला तोर । मोरे अंतस मा चले, तोर मया के शोर ।। मछरी बन तउरत हॅंवव, दहरा मया अथाह । तोर मया हा पानी बने, करे मोर परवाह ।। देखत रह चुप-चाप तैं, मंद-मंद मुस्काय । देखत हॅंव मैं एकटक, भीतर तोर समाय ।।

दारू मंद के लत लगे

दारू मंद के लत लगे, मनखेे मर मर जाय । जइसे सुख्खा डार हा, लुकी पाय बर जाय ।। तोरे पइसा देह हे, कर जइसे मन आय । पी-पा के तैं हा भला, काबर जगत सताय । मान बढ़ाई तैं भला, राखे काखर सोच । गारी-गल्ला देइ के, लेथस इज्जत नोच ।। कुकुर असन तैं तो भुके, बिलई कस मिमिआय । कभू शेर सियार बने, समझ नई कुछु आय ।। बने भिखारी दारू बर, बेचे अपन इमान । पाछू तैं देखात हस, आन बान अउ शान ।।

काव्य मा रस

सुने पढ़े मा काव्य ला, जउन मजा तो आय । आत्मा ओही काव्य के, रस तो इही कहाय । चार अंग रस के हवय, पहिली स्थाई भाव । रस अनुभाव विभाव हे, अउ संचारी भाव ।। भाव करेजा मा बसे, अमिट सदा जे होय । ओही स्थाई भाव हे, जाने जी हर कोय ।। ग्यारा स्थाई भाव हे, हास, षोक, उत्साह । क्रोध,घृणा,आश्चर्य भय,शम,रति,वतसल,भाह ।।  भाह-भक्ति भाव कारण स्थाई भाव के, जेने होय विभाव । उद्दीपन आलंबन ह, दू ठन तो हे नाव ।। जेन सहारा पाय के, जागे स्थाई भाव । जेन विषय आश्रय बने, आलंबन हे नाव ।। जेन जगाये भाव ला, ओही विषय कहाय । जेमा जागे भाव हा, आश्रय ओ बन जाय ।। जागे स्थाई भाव ला, जेेन ह रखय जगाय । उद्दीपन विभाव बने, अपने नाम धराय ।। आश्रय के चेश्टा बने, व्यक्त करे हेे भाव । करेे भाव के अनुगमन, ओेही हेे अनुभाव ।। कभू कभू जे जाग के, फेर सूत तो जाय । ओही संचारी भाव गा, अपने नाम धराय ।। चार भाव के योग ले, कविता मा रस आय । पढ़े सुने मा काव्य के, तब मन हा भर जाय ।।

चिंतन

धरम धरम के शोर हे, जाने धरम ल कोन । कट्टर मन चिल्लाय हे, धरमी बइठे मोन ।। पंथ पंथ के खेल ले, खेले काबर खेल । एक पेड़ के हे तना, तभो दिखय ना मेल ।। अपन सुवारथ मा करे, धरम करम के मोल । हत्या आस्था के करे, अपने बजाय ढोेल ।। भक्त बने के साध मा, मनखे हे बउराय । गिद्ध बाज मन ला घला, अपनेे गुरू बनाय ।। गुरू भक्ति के जोश मा, माने ना ओ बात । छोड़ सनातन बात ला, रचे अपन औकात ।। एक गांठ हरदी धरय, अइसन गुरू हजार ।। चार वेद हा सार हे, होये पंथ हजार । बेटा मारे बाप ला, अपन ल बड़े बताय । अइसन गुरू घंटाल हा, अपने पंथ बनाय ।। बाट सनातन धर्म ला, डंका अपन बजाय । सागर मा होकेे खड़ा, सागर खुदे कहाय ।। भेद संत के कोन हा, आज जान हे पाय । संत कभू बाजार मा, ठाठ-बाठ देखाय ।। ज्ञानी घ्यानी संत हा, करे सनातन गान। अपन बड़ाई छोड़ के, करथे सबके मान ।। परम तत्व केे खोेज मा, रहिथे जेन सहाय । जंगल झाड़ी हे कहां, हमला कोन बताय ।। अपन अपन आस्था हवय, धरव जिहां मन भाय । धरे हवस तैं जान के, बिरथा दोश लगाय ।। तोरे आस्था हे बड़े, मोर कहां कमजोर । जाबो एके घाट मा, जिहां बसे चितचोर ।। तोरे

लख चौरासी तैं भटक

लख चैरासी तैं भटक, पाय मनुज के देह । ऐती-तेती देख झन, कर ले प्रभु मा नेह ।। का लेके तैं आय हस, का ले जाबे साथ । आना खाली हाथ हे, जाना खाली हाथ ।। अगम गहिर जग रीत हे, निभा सकय ना जीव । राम राम भज राम तैं, भजे हवय गा सीव ।। कहे हवय सतसंग के, घाते महिमा संत । संत चरण मा जायके, अपन बना ले कंत ।।

छोड़ जगत के आस ला

दुनिया मा तैं आय के, माया मा लपटाय । असल खजाना छोड़ के, नकली ला तैं भाय ।। असल व्यपारी हे कहां, नकली के भरमार । कोनो पूछय ना असल, जग के खरीददार ।। का राखे हे देह के, माटी चोला जान । जाना चोला छोड़ के, झन कर गरब गुमान ।। कागज के डोंगा बनक, बने देह हा तोर । नदिया के मजधार मा, देही तोला बोर ।। परे विपत मा देख ले, आथे कोने काम ।। छोड़ जगत के आस ला, भज ले सीताराम ।

आज देवउठनी हवय

छोटे देवारी देवउठनी एकादशी के अब्बड़ अब्बड़ बधाई आज देवउठनी हवय, चुहकबो कुसीयार । रतिहा छितका तापबो, जुर मिल के परिवार ।। लक्ष्मी ह कुसीयार बन, जोहे हे भगवान । कातिक महिना जाड़ के, छितका ले सम्मान ।। बिंदा तुलसी हे बने, बिष्णु ह सालिक राम । तुलसी बिहाव गांव मा, देखत छोड़े काम ।। उपास हे मनखे बहुत, ले श्रद्धा विश्वास । अंध विश्वास झन कहव, डाइटिंग ल उपास ।। हमर लोक संस्कृति हवय, हमरे गा पहिचान । ईश्वर ला हर बात मा, हम तो देथन मान ।।

दोहा

1. आमा रस कस प्रेम हे, गोही कस हे बैर । गोही तै हर फेक दे, होही मनखे के खैर ।। 2. लालच अइसन हे बला, जेन परे पछताय । फसके मछरी गरी मा, अपन जाने गवाय ।। 3. अपन करम गति भोग बे, भोगे हे भगवान । बिंदा के ओ श्राप ले, बनगे सालिक राम ।। 4. करम बड़े के भाग हा, जोरव ऐखर  ताग । नगदी पइसा कस करम, कोठी जोरे  भाग ।। 5. लाश जरत तै देख के, का सोचे इंसान । ऐखर बारी हे आज गा, काली अपन ल जान ।। -रमेश

सीखव

नई होय छोटे बड़े, जग के कोनो काम । जेमा जेखर लगे मन, ऊही ले लौ दाम ।। सक्कर चाही खीर बर, बासी बर गा नून । कदर हवय सबके अपन, माथा तै झन धून ।। निदा निन्द ले धान के, खातू माटी डार । पढ़ा लिखा लइका ल तै, जीनगी ले सवार।। महर महर चंदन करय, अपने बदन गलाय । आदमी ला कोन कहय , देव माथे चढ़ाय ।। सज्जन मनखे होत हे, जइसे होथे रूख । फूलय फरय दूसर बर, चाहे जावय सूख ।। जम्मो इंद्रिल करय बस, बगुला ह करे ध्यान । जेन करय काम अइसन, ओखर होवय मान ।।

छत्तीसगढ़ी दोहा

छत्तीसगढ़ी दोहा    हर भाखा के कुछु न कुछु, सस्ता महंगा दाम ।    अपन दाम अतका रखव, आवय सबके काम ।।    दुखवा के जर मोह हे , माया थांघा जान ।    दुनिया माया मोह के, फांदा कस तै मान।।    ये जिनगी कइसे बनय, ये कहूं बिखर जाय ।    मन आसा विस्वास तो, बिगड़े काम बनाय ।। -रमेश चौहान .

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