सुने पढ़े मा काव्य ला, जउन मजा तो आय ।
आत्मा ओही काव्य के, रस तो इही कहाय ।
चार अंग रस के हवय, पहिली स्थाई भाव ।
रस अनुभाव विभाव हे, अउ संचारी भाव ।।
भाव करेजा मा बसे, अमिट सदा जे होय ।
ओही स्थाई भाव हे, जाने जी हर कोय ।।
ग्यारा स्थाई भाव हे, हास, षोक, उत्साह ।
क्रोध,घृणा,आश्चर्य भय,शम,रति,वतसल,भाह ।। भाह-भक्ति भाव
कारण स्थाई भाव के, जेने होय विभाव ।
उद्दीपन आलंबन ह, दू ठन तो हे नाव ।।
जेन सहारा पाय के, जागे स्थाई भाव ।
जेन विषय आश्रय बने, आलंबन हे नाव ।।
जेन जगाये भाव ला, ओही विषय कहाय ।
जेमा जागे भाव हा, आश्रय ओ बन जाय ।।
जागे स्थाई भाव ला, जेेन ह रखय जगाय ।
उद्दीपन विभाव बने, अपने नाम धराय ।।
आश्रय के चेश्टा बने, व्यक्त करे हेे भाव ।
करेे भाव के अनुगमन, ओेही हेे अनुभाव ।।
कभू कभू जे जाग के, फेर सूत तो जाय ।
ओही संचारी भाव गा, अपने नाम धराय ।।
चार भाव के योग ले, कविता मा रस आय ।
पढ़े सुने मा काव्य के, तब मन हा भर जाय ।।
आत्मा ओही काव्य के, रस तो इही कहाय ।
चार अंग रस के हवय, पहिली स्थाई भाव ।
रस अनुभाव विभाव हे, अउ संचारी भाव ।।
भाव करेजा मा बसे, अमिट सदा जे होय ।
ओही स्थाई भाव हे, जाने जी हर कोय ।।
ग्यारा स्थाई भाव हे, हास, षोक, उत्साह ।
क्रोध,घृणा,आश्चर्य भय,शम,रति,वतसल,भाह ।। भाह-भक्ति भाव
कारण स्थाई भाव के, जेने होय विभाव ।
उद्दीपन आलंबन ह, दू ठन तो हे नाव ।।
जेन सहारा पाय के, जागे स्थाई भाव ।
जेन विषय आश्रय बने, आलंबन हे नाव ।।
जेन जगाये भाव ला, ओही विषय कहाय ।
जेमा जागे भाव हा, आश्रय ओ बन जाय ।।
जागे स्थाई भाव ला, जेेन ह रखय जगाय ।
उद्दीपन विभाव बने, अपने नाम धराय ।।
आश्रय के चेश्टा बने, व्यक्त करे हेे भाव ।
करेे भाव के अनुगमन, ओेही हेे अनुभाव ।।
कभू कभू जे जाग के, फेर सूत तो जाय ।
ओही संचारी भाव गा, अपने नाम धराय ।।
चार भाव के योग ले, कविता मा रस आय ।
पढ़े सुने मा काव्य के, तब मन हा भर जाय ।।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें