अरे पुरवाही, ले जा मोरो संदेश धनी मोरो बइठे, काबर परदेश अरे पुरवा…ही मोर मन के मया, बांध अपन डोर छोड़ देबे ओखरे , अचरा के छोर सुरुर-सुरुर मया, देवय सुरता के ठेस अरे पुरवा…ही जोहत हंवव रद्दा, अपन आँखी गाढ़े आँखी के पुतरी, ओखर मूरत माढ़े जा-जा रे पुरवाही, धर के मोरे भेस अरे पुरवा…ही मोरे काया इहां, उहां हे परान अरे पुरवाही, होजा मोरे मितान देवा दे ओला, आये बर तेश अरे पुरवा…ही -रमेश चौहान
दो अवधी कवितायेँ -प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
-
1-दादा बोलें आऊ पूत बच वाचलाब कइयां बकइयां कहय कि पकरब आज जो धैन्या कहिस
उन्जरिया जाव तुम पूत खावपियव फि रहो व मजबूत। बड़े हो वफिर आऊधाय करबय हम
तुम्हार इं...
1 घंटे पहले