कोरोना के डंस, लॉकडाउन के चाबे (छप्पय छंद) ये कोरोना रोग, लॉकडाउन ला लाये । रोजी-रोटी काम, हाथ ले हमर नगाये ।। रोग बड़े के दोख, सबो कोती ले मरना । जीना हे जब पोठ, रोग ले अब का डरना ।। कोरोना के ये कहर, काम-बुता ला तो छिने । बिना रोग के रोग मा, मरत ला कोन हा गिने ।। गिनत हवय सरकार, दिखय जेने हा आँखी । गिनय कोन गा आज, झरे कतका के पाँखी ।। कोरोना के डंस, लॉकडाउन के चाबे । खाली होगे हाथ, गीत काखर तैं गाबे ।। बिन पइसा के जिंनगी, मछरी तरिया पार के । जीना-मरना एक हे, पइसा बिन परिवार के । देवय कोने काम, काम चाही जी हम ला । काम नहींं ना दाम, कोन देखावय दम ला । अटके आधा सॉस, लॉकडान के मारे गा । डोंगा हे मझधार, कोन हम ला अब तारे गा ।। कोरोना के फेर मा, हमर लुटा गे नौकरी । काम चलाये बर हमर, बेचागे सब बोकरी ।।
महाकुंभ 2025: प्रयागराज में आस्था और संस्कृति का महासंगम
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प्रयागराज, जिसे त्रिवेणी संगम के लिए जाना जाता है, इस वर्ष महाकुंभ के पावन
अवसर पर लाखों श्रद्धालुओं, साधु-संतों और पर्यटकों का स्वागत कर रहा है।
महाकुंभ क...
1 हफ़्ते पहले