चुन्दी (कुण्डलियां) चुन्दी बगरे हे मुड़ी, जस कोनो फड़बाज। लम्बा-लम्बा ठाढ़ हे, जइसे के लठबाज ।। जइसे के लठबाज, तने हे ठाढ़े-ठाढ़े । कंघी के का काम, सरत हे माढ़े-माढ़े ।। मुसवा दे हे चान, खालहे ला जस बुन्दी । आज काल के बात, मुड़ी मा बगरे चुन्दी ।। -रमेश चौहान
पुस्तक समीक्षा:शोधार्थियों के लिए बहुपयोगी प्रबंध काव्य “राजिम सार”-अजय
‘अमृतांशु’
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मनीराम साहू मितान द्वारा सृजित “राजिम सार” छत्तीसगढ़ी छन्द प्रबंध काव्य
पढ़ने को मिला। छत्तीसगढ़ी में समय-समय पर प्रबंध काव्य लिखे जाते रहे है।
पंडित सुंदर...
3 दिन पहले