भीतरे भीतर जरव मत (तुकांत गज़ल) भीतरे भीतर जरव मत बिन आगी के बरव मत अपन काम ले काम जरूरी फेर बीमरहा कस घर धरव मत जेला जे पूछय तेला ते पूछव राम-राम कहे बिन कोनो टरव मत चार दिन के जिंदगी चारठन गोठ चार बरतन के ठेस लगे लडव मत काना-फुँसी कानों कान होथे दूसर के कान ला भरव मत आँखी के देखे धोखा हो सकथे अंतस के आँखी बंद करव मत -रमेश चौहान
समृद्ध बस्तर, शोषित बस्तर- श्रीमती शकुंतला तरार
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श्रीमती शकुंतला तरार,एक ऐसी कवयित्री जो बस्तर में जन्मीं और बस्तर को ही
अपनी कलम का केन्द्र बनाया।सोचिए — जिस धरती पर जन्म हुआ, उसी पर इतनी गहराई
से लिखा क...
1 दिन पहले