भागही ये कोरोना (कुण्डलियॉं) रहना दुरिहा देह ले, रहि के मन के तीर । कोरोना के काल मा, होये बिना अधीर ।। होय बिना अधीर, संग अपने ला दे ना । दू भाखा तैं बोल, अकेलापन ला ले ना ।। तोर हाथ मा फोन, अपन संगी ला कह ना । हवन संग मा तोर, अकेल्ला मत तैं रहना ।। कोरोना के रोग ले, होबो हम दू-चार । मन ला मन ले जोड़ के, रहिना हे तइयार ।। रहिना हे तइयार, हराना हे जब ओला । तन ले रहिके दूर, खोलबो मन के खोला अपने आप सम्हाल, नई हे हमला रोना । जुरमिल करव उपाय, भागही ये कोरोना ।।
हिन्दी साहित्य में भारतीय लोकसंस्कृति की जड़ें और उसका जीवंत स्वरूप-रमेश
चौहान
-
रमेश चौहान एक वरिष्ठ साहित्यकाारहैं, जो हिन्दी एवं छत्तीसगढ़ी दोनों भाषाओं
में गद्य एवं पद्य दोनों विधाओं में समान अधिकार रखते हैं । पद्य में आपका
परिचय एक...
11 घंटे पहले