कइसे तैं आसों भला, भादों मा तड़पाय ।।
काबर तैं गुसिआय हस, आज कनेखी देख ।
उमड़-घुमड़ तैं आय के, रूके नही पल एक ।।
भादों के ये भोमरा, बने जेठ भरमाय ।। बादर बैरी तैं कहां.....
धनहा के छाती फटे, मुड़ धर रोय किसान ।
नरवा मन पटपर हवय, अटके अधर म जान ।।
पानी के हर बूंद हा, तोरे कोख समाय ।। बादर बैरी तैं कहां.....
काबर बिट्टोवत हवस, पर तो जही दुकाल ।
काबर हमरे संग मा, खेले छू-छूवाल ।।
तोर रिसाये ले जगत, हमला कोन बचाय । बादर बैरी तैं कहां.....
सुन ले अब गोहार ला, गुस्सा अपनेे छोड़ ।
माफी मांगत हन हमन, अपन हाथ ला जोड़ ।।
रद्-रद् पानी अब बरस, जड़-जीवन हरसाय । बादर बैरी तैं कहां.....
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