गाँव होवय के शहर मा, एक सबके चाल हे ।।
रोज दरूहा के गदर मा, आदमी बेहाल हे ।।
हे मचे झगरा लड़ाई, गाँव घर परिवार मा ।।
रोज के परिवार टूटय, दारू के ये मार मा ।।
रात दिन सब एक हावे,, देख दरूहा हर गली ।
हे बतंगड़ हर गली मा, कोन रद्दा हम चली ।
जुर्म दुर्घटना घटे हे, आज जतका गाँव मा ।
देख आँखी खोल के तैं, होय दरूहा दाँव मा ।।
सोच ले सरकार अब तैं, दारू के ये काम हे ।
आदमी बेहाल जेमा, दाग तोरे नाम हे ।।
दारू भठ्ठी बंद कर दे, टेक्स अंते जोड़ दे ।
पाप के हे ये कमाई, ये कमाई छोड़ दे ।
आदमी के सरकार तैं हा, आदमी खुद मान ले ।
आदमी ला आदमी रख, आदमी ला जान ले ।।
काम अइसे तोर होवय, आदमी बर आदमी ।
आदमी के कर भलाई, हस तभे तैं आदमी ।।
-रमेश चौहान
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