सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

कतका झन देखे हें-

अइसन सुंदर तैं दिखे

जिंस पेंट फटकाय के, निकले जब तैं खोर । लिच लिच कनिहा हा करे, ऐ ओ गोरी तोर ।। देख देख ये रेंगना, कउंवा करें न कांव । मुक्का होगे मंगसा, परे तोर जब छांव ।। करिया बादर छाय हे, चेथी मा तो तोर । नील कमल हा हे खिले, तोरे आंखी कोर ।। लाल फूल दसमत खिले, पा के तोरे ओट । नाजुक होगे गाल हा, केश करे जब चोट ।। दूनो भौ के बीच मा, चंदा आय लुकाय । सुरूज अपन ओे रोशनी, तोरे मुॅह ले पाय ।। अइसन सुंदर तैं दिखे, मिले नही उपमान । जेने उपमा ला धरॅंव, होथे तोरे अपमान ।।

मनखे मनखे बाट

1. जतका महिमा हे कहे, गुरू मन के सब वेद ।          एक्को लक्षण ना दिखय, आज होत हे खेद ।। 2. आत्म ज्ञान ला छोड़ के, अपने नाम रटाय ।          दान-मान ला पाय के, कोठी बड़े बनाय ।। 3. आत्म-ज्ञान काला कथे, हमला कोन बताय ।         कहां आत्म ज्ञानी हवय, हमला कोन लखाय ।। 4. ज्ञान हवे का ओखरे, जाने गा भगवान ।          बड़का ओखर ले कहां, जग मा हे धनवान ।। 5. अपन धरम ला काट के, गढ़े हवे नव पंथ ।         जेला चेला मन कहय, नवाचरण के कंथ ।। 6. जेन पेड़ के डार हे, जर ल ओखरे काट ।         संत घला कहावत हे, मनखे मनखे बाट।।

भादो महिना तोर तो

भादो महिना तोर तो, रहीस अगोेरा घात । सावन महिना भाग गे, हम सब ला तरसात ।। बरस तरस के आज तैं, देख सुखावत धान । धान-पान बिन आदमी, कइसे मारय शान ।। बिन पानी तो धान हा, लगे हवे अइलात ।। भादो महिना तोर तो..... कतका निंदा निंदबो, ओही ओही झार । मिलय नही बनिहार हा, कामचोर भरमार । अब तो तोरे आसरा, दिल मा हमन बसात । भादो महिना तोर तो...... सरवर-दरवर तैं बरस, बता अपन पहिचान । बरस झमा-झम आज तैं, बाढ़य तोरे मान । अतका पानी तैं बरस, नाचय सबो जमात । भादो महिना तोर तो.....

करे हिलोर हृदय मा

करे हिलोर हृदय मा, तोर मया हा धूम । मैं भवरा तैं फूलवा, नाचत हॅंव मैं झूम ।। तोर मया हा साॅस हे, पुरवाही म समाय । देखत तोरे चेहरा, पीरा सबो नसाय ।। मोरे तन मन तोर हे, जीनगी घला तोर । मोरे अंतस मा चले, तोर मया के शोर ।। मछरी बन तउरत हॅंवव, दहरा मया अथाह । तोर मया हा पानी बने, करे मोर परवाह ।। देखत रह चुप-चाप तैं, मंद-मंद मुस्काय । देखत हॅंव मैं एकटक, भीतर तोर समाय ।।

चिक्कन चांदन अंगना

चिक्कन चांदन अंगना, चिक्कन-चिक्कन खोर । तन मन ला राखे बने, खुशी भरे हर पोर ।। पानी पीये साफ तैं, कपड़ा पहिरे साफ । घर आघू कचरा परे, कोन करय जी माफ ।। साफ सफाई राख तैं, खोर गली ला तोर ।। चिक्कन चांदन अंगना..... साफ सफाई काम बर, अगल-बगल झन देख । हाथ बटा लव काम मा, देखव मत मिन-मेख ।। अपन अपन घर-द्वार के, काड़ी-कचरा जोर । चिक्कन चांदन अंगना..... अपन जुठा मुॅह ला खुदे, धोथव जी हर कोय । अपन मइल ला आन बर, काबर देत बरोय ।। तोरे सेती गांव मा, कचरा होय न थोर । चिक्कन चांदन अंगना.... बाहिर बट्टा कोन हा, बइठे माड़ी मोड़ । डहर-डहर भर देख लव, रखत बने ना गोड़ ।। का करही सरकार हा, अइसन आदत तोर । चिक्कन चांदन अंगना.... आदत अपन सुधार लव, सुधर जही गा गांव । साफ सफाई शांति के, बन जाही जी छांव ।। चिरई कस फुदकी हमन, तिनका-तिनका जोर । चिक्कन चांदन अंगना....

दारू मंद के लत लगे

दारू मंद के लत लगे, मनखेे मर मर जाय । जइसे सुख्खा डार हा, लुकी पाय बर जाय ।। तोरे पइसा देह हे, कर जइसे मन आय । पी-पा के तैं हा भला, काबर जगत सताय । मान बढ़ाई तैं भला, राखे काखर सोच । गारी-गल्ला देइ के, लेथस इज्जत नोच ।। कुकुर असन तैं तो भुके, बिलई कस मिमिआय । कभू शेर सियार बने, समझ नई कुछु आय ।। बने भिखारी दारू बर, बेचे अपन इमान । पाछू तैं देखात हस, आन बान अउ शान ।।

नाग पंचमी

दूध ले गिलास भरे, हाथ मा पट्टी ला धरे, नाग फोटु उकेर के, स्कूल जात लइका । फूल-पान ला चढ़ाये, नाग देवता मनाये , नरियर ला फोर के, रखे हवें सइता ।। बारी-कोला खेत-खार, माटी दिया दूध डार, भिमोरा ला खोज के, पूजे हवे किसाने । प्राणी प्राणी हर जीव, जेमा बिराजे हे षिव, नाग हमर देवता, धरती के मिताने ।। जांघ निगोट लपेट, धोती कुरता ला फेक, बड़े पहलवान हा, देख तइयार हे । गांव मा खोजत हवे, चारो कोती घूम-घूम लडे बर तो गांव मा, कोन होशियार हे । जांघ ला वो ठोक-ठोक, कहत हे घेरी-बेरी, अतका जड़ गांव मा, लगथे सियार हे । आजा रे तैं जवान, आजा गा तैं किसान, मलयुद्ध तो खेलबो, पंचमी तिहार हे ।।

एक आसरा सार हे,

एक आसरा सार हे, बाकी सब बेकार । जिनगी पानी फोटका, बनते बिगड़े जाय । का राखे हे देह के, कब जग ले बिलगाय ।। जेखर हम उपजाय हन, ओही तो हे सार ।। एक आसरा सार हे..... खेल कूद लइकापन म, जानेन एक बात । भरे जवानी मा घला, मिले हवे सौगात ।। सुख के संगी सब हवय, दुख मा हे लाचार ।। एक आसरा सार हे..... मोर मोर तैं तो कहे, कोन चीज हे तोर । जग मा आके पाय हस, आंखी देख निटोर ।। मुठठी बांधे आय हन, जाबो हाथ पसार ।। एक आसरा सार हे..... जग के मालिक एक हे, लाखों नाम धराय । करता धरता तोर तो, नजर कहां हे आय ।। अंतस अंतस हे बसे,  खोजे हस संसार ।। एक आसरा सार हे..... भज ले ओही राम ला, बोल खुदा के नाम । समरथ सिराय तोर जब, आही वोही काम ।। मनखे तन ला पाय के, संतन गोठ सवार ।। एक आसरा सार हे.....

हिम्मत बने बटोर

मंजिल पाना जब हवे, हिम्मत  बने बटोर । आघू आघू रेंग तैं, पाछू ला झन देख । गय दिन हा बहुरा नही, बदल भाग के रेख । छोड़ कुलुप के फेर ला, आघू मा हे अंजोर ।। मंजिल पाना जब हवे.... मन के हारे हार हे, करले लाख उपाय । पग पग मा हे जीत हा,  जब मन बने सहाय ।। मन तो तोरे पास मा, मन के तारे ला जोर ।। मंजिल पाना जब हवे.... जीवन के तकलीफ ला, अपन परीक्षा मान । सोना आगी मा तपे, कुंदन बने महान ।। हरिशचंद ला याद कर, कष्ट सहे हे घोर ।। मंजिल पाना जब हवे....

काव्य मा रस

सुने पढ़े मा काव्य ला, जउन मजा तो आय । आत्मा ओही काव्य के, रस तो इही कहाय । चार अंग रस के हवय, पहिली स्थाई भाव । रस अनुभाव विभाव हे, अउ संचारी भाव ।। भाव करेजा मा बसे, अमिट सदा जे होय । ओही स्थाई भाव हे, जाने जी हर कोय ।। ग्यारा स्थाई भाव हे, हास, षोक, उत्साह । क्रोध,घृणा,आश्चर्य भय,शम,रति,वतसल,भाह ।।  भाह-भक्ति भाव कारण स्थाई भाव के, जेने होय विभाव । उद्दीपन आलंबन ह, दू ठन तो हे नाव ।। जेन सहारा पाय के, जागे स्थाई भाव । जेन विषय आश्रय बने, आलंबन हे नाव ।। जेन जगाये भाव ला, ओही विषय कहाय । जेमा जागे भाव हा, आश्रय ओ बन जाय ।। जागे स्थाई भाव ला, जेेन ह रखय जगाय । उद्दीपन विभाव बने, अपने नाम धराय ।। आश्रय के चेश्टा बने, व्यक्त करे हेे भाव । करेे भाव के अनुगमन, ओेही हेे अनुभाव ।। कभू कभू जे जाग के, फेर सूत तो जाय । ओही संचारी भाव गा, अपने नाम धराय ।। चार भाव के योग ले, कविता मा रस आय । पढ़े सुने मा काव्य के, तब मन हा भर जाय ।।

बेजा कब्जा घात

गली गली हर गांव मा, बेजा कब्जा घात । गली गली छेकाय अब, रद्दा रेंगव देख । कतका मनखे हे तपे, गांव गली ला छेक ।। मनखेपन के मान मा, कतका करे अघात ।। गली गली हर गांव मा.... जे सरकारी जमीन लगय, मान बाप के माल । लाठी जेखर हाथ मा, ऊधम करे धमाल ।। मुटुर मुटुर सब देखथे, कइसन हवे जमात ।। गली गली हर गांव मा.... तरिया नरवा छेक के, दे हें ओला पाट । कहां हवे पानी भला, कहां हवे गा घाट ।। बरजे मा माने नही, करत हवे उत्पात ।। गली गली हर गांव मा.... कोन खार परिया बचे, कहां बचे गउठान । छूटय ना ये बंधना, पारे हवे गठान । गउ ला माता जे कहे, कइसे गे हे मात ।। गली गली हर गांव मा.... बिता बिता ठउर बर, ले लेथे गा जान । अपन भला तो हे अपन, पर के अपने मान ।। लगय देख ये हाल ला, अम्मावस के रात ।। गली गली हर गांव मा.... लोकतंत्र के राज मा, मनखे के ये रोग । करे आजाद देश  ला, चढ़ाये हवें भोग ।। वोट बैंक के फेर मा, नेता करे न बात ।। गली गली हर गांव मा....

भूत मया के हे धरे (दोहा-ददरिया)

नायक कहां जात हस आज तैं, करे बने सिंगार । कुछु कांही तो बोल ले, करके तैं उपकार ।। नायिका का मतलब तोला हवय, कर तैं अपने काम । जाना हे मोला जिहां, जाहूं ऊही धाम ।। नायक बोली ले महुहा झरे, सुन सुन नशा छाय । चंदा बानी चेहरा, रति हर देख लजाय ।। थोरिक बिलम्ब ले इहां, जाबे तब संसार ।। कहां जात हस आज तैं......   नायिका बड नटखट बदमाश हस, रद्दा छेके मोर । काम बुता तैं छोड़ के, ठाड़े दांत निपोर ।। चल हट रद्दा छोड़ दे, होत हवे रे घाम ।। का मतलब तोला हवय...... नायक रद्दा छोड़े मैं खड़े, काबर दोश लगाय । अंतस अपने देख ले, कोन भला बिलमाय । तन धर के ठाड़े मया, तोरे रद्दा पार ।। कहां जात हस आज तैं...... नायिका बइही  अस मोला लगय, सुन के तोरे गोठ । तैं दूरीहा मा खड़े, कोन धरे हे पोठ ।। भूत मया के हे धरे, अब का होही राम ।। का मतलब तोला हवय......

चिंतन

धरम धरम के शोर हे, जाने धरम ल कोन । कट्टर मन चिल्लाय हे, धरमी बइठे मोन ।। पंथ पंथ के खेल ले, खेले काबर खेल । एक पेड़ के हे तना, तभो दिखय ना मेल ।। अपन सुवारथ मा करे, धरम करम के मोल । हत्या आस्था के करे, अपने बजाय ढोेल ।। भक्त बने के साध मा, मनखे हे बउराय । गिद्ध बाज मन ला घला, अपनेे गुरू बनाय ।। गुरू भक्ति के जोश मा, माने ना ओ बात । छोड़ सनातन बात ला, रचे अपन औकात ।। एक गांठ हरदी धरय, अइसन गुरू हजार ।। चार वेद हा सार हे, होये पंथ हजार । बेटा मारे बाप ला, अपन ल बड़े बताय । अइसन गुरू घंटाल हा, अपने पंथ बनाय ।। बाट सनातन धर्म ला, डंका अपन बजाय । सागर मा होकेे खड़ा, सागर खुदे कहाय ।। भेद संत के कोन हा, आज जान हे पाय । संत कभू बाजार मा, ठाठ-बाठ देखाय ।। ज्ञानी घ्यानी संत हा, करे सनातन गान। अपन बड़ाई छोड़ के, करथे सबके मान ।। परम तत्व केे खोेज मा, रहिथे जेन सहाय । जंगल झाड़ी हे कहां, हमला कोन बताय ।। अपन अपन आस्था हवय, धरव जिहां मन भाय । धरे हवस तैं जान के, बिरथा दोश लगाय ।। तोरे आस्था हे बड़े, मोर कहां कमजोर । जाबो एके घाट मा, जिहां बसे चितचोर ।। तोरे

संत कइसे तैं माने

लेथस साग निमार के, दू पइसा के दाम । बीज घला बोये हवस, सूखा के तैं घाम । सूखा के तैं घाम, बने घिनहा ला जाने । बिना बिचारे फेर, संत कइसे तैं माने ।। आस्था अपन निकाल, बिना परखे तै देथस । धरम करम के नाम, बिना सोचे कर लेथस ।।

बाबा बनहू

बेटा का बनबे बाढ़ के, पूछेंव एक बार । सोच समझ के तैं बता, कइसे होबे पार ।। कइसे होबे पार, जगत के मझधारे ले । तन मन सुघ्घर होय, अपन चिंता मारे ले ।। बेटा बने सियान, कहय गा छोड़ चपेटा । बाबा बन के नाम, कमाही तोरे बेटा ।।

दोेहा-ददरिया

नायिका सावन मा लागे झड़ी, हरर हरर तो जेठ । तोर अगोरा मैं धनी, खड़े दुवारी पेठ ।। नायक बात जेठ के छोड़ दे, आगे सावन देख । होही हरियर अब छोर हा, अचरा मया समेख ।। नायिका सपना जइसे हे लगे, तोर मया के गोठ । दरस परस बर तोर गा, जागे पियास पोठ ।। नायक साॅस साॅस मा तैं बसे, मोरे साॅस चलाय । बैरी गोरी साॅस ले, कइसे तैं बिसराय ।। नायिका डारा डारा नाचथे, भवरा देख लुभाय । काचा काचा ओ कली, कइसे जाय भुलाय ।। नायक कांटा छेदे पंख ला, तभो कली बर जाय । भवरा देथे प्राण ला, जग ला मया जनाय ।। नायिका मैं अइलावत धान कस, रहेंव गा मुरझाय । सावन बरखा बूॅंद कस, मोला तैं जीयाय ।। नायक तोरे ले मोरे हवय, जीवन के ये डोर । चीत चोर सजनी भला, समझे कइसे चोर ।। नायिका बालम तोरे आय ले, आये जीवन मा भोर । तोर मया के गोठ ला, बांधे रहिंव छोर ।। नायक ऐही आसा विष्वास हा, बने मया के गांठ । बोली बतरस मा अपन, हॅसी खुषी ला साट ।। -रमेेश चौहान

गीत सुंदर कांड के-5

सीता माता ला देखे हव का जी, मोर राम के ओ दुलारी ला सीता माता ला देखे हव का जी, मोर राम के ओ दुलारी ला वल्कल पहिरे वियोग गहिरे, दुख के ओ दुखयारी ला जी वल्कल पहिरे वियोग गहिरे दुख के ओ दुखयारी ला जी सीता माता ला देखे हव का जी, मोर राम के ओ दुलारी ला सीता माता ला देखे हव का जी, मोर राम के ओ दुलारी ला रावण के लंका बस्ती मा, कोन संत के हे बासा रावण के लंका बस्ती मा, कोन संत के हे बासा जेखर अंगना तुलसी बिरवा, जेखर अंगना तुलसी बिरवा, राम नाम हे दरवाजा, दुखयारी ला देखे हव का जी मोर राम के ओ दुलारी ला राम राम कहि विभिशण जागे, सम्मुख हनुमत पाये राम राम कहि विभिशण जागे, सम्मुख हनुमत पाये देख देख एक दूसर ला, देख देख एक दूसर ला, अपन गला लगाये, दुखयारी ला देखे हव का जी मोर राम के ओ दुलारी ला विभिशण ला संत जाने, पूछत हवे हनुमान विभिशण ला संत जाने, पूछत हवे हनुमान रावण जेन नारी हर लाय, रावण जेन नारी हर लाय रखे हे कोन स्थान, दुखयारी ला देखे हव का जी मोर राम के ओ दुलारी ला

गीत सुंदर कांड के-4

खोजन लागे हनुमान, खोजन लागे हनुमान लंका के घर-घर मा सीता ला खोजन लागे खोजन लागे हनुमान, लंका के घर-घर मा सीता ला खोजन लागे खोजन लागे हनुमान, लंका के घर-घर मा सीता ला खोजन लागे चोरहा रावण सीता ला कती राखे गा चोरहा रावण सीता ला कती राखे गा ये कती राखे हे गा, ये कती राखे हे गा कती राखे गा, कती राखे गा मोरे रामे के सीता ला, मोरे रामे के सीता ला मोरे रामे के सीता ला कती राखे ना सीता ला खोजन लागे खोजन लागे हनुमान, लंका के घर-घर मा सीता ला खोजन लागे रावण के राजेमहल मा सीता हवय का रावण के राजेमहल मा सीता हवय का ये सीता हा हवय का, ये सीता हा हवय का सीता हवय का, सीता हवय का सीता होही दुखयारी, सीता होही दुखयारी होही कोनो आन, ये सीता नई लागे सीता ला खोजन लागे खोजन लागे हनुमान, लंका के घर-घर मा सीता ला खोजन लागे

गीत सुंदर कांड के-3

अंतस मा रामे ला राखे, हाथे मा गदा ला साजे अंतस मा रामे ला राखे, हाथे मा गदा ला साजे पहाड़े ऊपर जाके गा..........., रामदूत हनुमान रामदूत हनुमान भरे हे उड़ान, सीता खोजे बर हो राम पानी ले बाहिरे आके, हाथ जोड़े हे मैनाके कहय थिरालव सुराताके, मोरे पीठे मा आके, मैनाके ला हाथ लगा के गा................, रामदूत हनुमान रामदूत हनुमान भरे हे उड़ान, सीता खोजे बर हो राम देवता मन जब ओला देखे, ऊंखर मन मा षंका होगे मुॅह ला सत जोजन करके, सुरसा ओखर रद्दा रोके, सुरसा मुहे मा जाके गा.............., रामदूत हनुमान रामदूत हनुमान भरे हे उड़ान, सीता खोजे बर हो राम आघू मा जब लंका आगे, मसक समान ओ रूप ला साजे तभो लंकीनी हा ओला पागे, रोके रद्दा आघू जाके लंकीनी ला मुटका जमा के गा..............., रामदूत हनुमान रामदूत हनुमान भरे हे उड़ान, सीता खोजे बर हो राम

मोर मितान

हर सुख दुख मा साथ रहय, संगी मोर मितान । जानय मन के भेद ला, मोला गढ़े महान । मोला गढ़े महान, हाथ धर रेंगय आघू । जब भटकय मन मोर, रखय समझाय अगाघू ।। सुनलव कहय ‘रमेश‘, मिताने हा समझे हर दुख । संगी बिना बेकार, लगय जीवन के हर सुख ।। -रमेश चौहान

गीत सुंदर कांड के-2

जा जा गा पवन सुत 4 हवस तहीं हा राम दूत, राम बर ले हस अवतार हवस तहीं हा राम दूत, राम बर ले हस अवतार गा जा जा गा पवन सुत 4 सागर करत हे लहर लहर, कोने जावे आघू डहर सागर करत हे लहर लहर, कोने जावे आघू डहर तोरे बिना हे बजरंग, होगे हवन हमन अधर कोने लावय सीता के खबर, जा जा गा पवन सुत 4 हवस तहीं हा राम दूत, राम बर ले हस अवतार हवस तहीं हा राम दूत, राम बर ले हस अवतार गा जा जा गा पवन सुत 4 मनावत कहत हवे जामवंत, उठव उठव गा हनुमंत मनावत कहत हवे जामवंत, उठव उठव गा हनुमंत तोरे असन तो ये जग मा, कहां हवय कोनो बलवंत बानर दल के हस तही कंत, जा जा गा पवन सुत 4 हवस तहीं हा राम दूत, राम बर ले हस अवतार हवस तहीं हा राम दूत, राम बर ले हस अवतार गा जा जा गा पवन सुत 4 बिसरे बल के कर ले सुरता, लइकापन के अपन बिरता बिसरे बल के कर ले सुरता, लइकापन के अपन बिरता अंग अंग मा तोरे भरे हे बल, जावव झन ये हा अबिरथा दे दे अब हमला धीरजा, जा जा गा पवन सुत 4 हवस तहीं हा राम दूत, राम बर ले हस अवतार हवस तहीं हा राम दूत, राम बर ले हस अवतार गा जा जा गा पवन सुत 4

गीत सुंदर कांड के -1

भजत हे बजरंग- राम राम राम समस्या विकट आय रे - समुद्दर हे विशाल कोन ओ पार जाय रे समुद्दर हे विशाल कोन ओ पार जाय रे- समुद्दर हे विशाल कोन ओ पार जाय रे भजत हे बजरंग- राम राम राम समस्या विकट आय रे - समुद्दर हे विशाल कोन ओ पार जाय रे समुद्दर हे विशाल कोन ओ पार जाय रे- समुद्दर हे विशाल कोन ओ पार जाय रे भजत हे बजरंग- राम राम राम अंगद करे विचार जामवंत के संग संग-जामवंत के संग संग जामवंत के संग संग-सीता के खोज कर कोन हर भरय उमंग कोन हर भरय उमंग-कोन हर भरय उमंग बिधुन होय बजरंग-राम राम राम भजन मा भुलाय रे- समुद्दर हे विशाल कोन ओ पार जाय रे ताकत ला बतावय बेंदरा मन अपन-अपन-बेंदरा मन अपन अपन बेंदरा मन अपन अपन-पूरा करय ना कोनो ऊंखर सपन कोनो ऊंखर सपन- कोनो ऊंखर सपन खोजे तब बजरंग-राम राम राम कहां लुकाय रे- समुद्दर हे विशाल कोन ओ पार जाय रे खोजत हे सब बेंदरा ऐती तेती जाय जाय-ऐती तेती जाय जाय ऐती तेती जाय जाय-कहां हस बजरंग कती तै बिलमाय कती तै बिलमाय-कती तै बिलमाय मिले जब बजरंग-राम राम राम जामवंत जगाय रे- समुद्दर हे विशाल कोन ओ पार जाय रे

जय जय गुरूदेवा

जय जय गुरूदेवा, तोरे सेवा, करे जगत हा, पाँव धरे । गुरू तहीं रमेशा, तहीं महेशा, ब्रम्हा तहीं बन, जगत भरे ।। सद्गुरू पद पावन, पाप नशावन, दया जेखरे, पाप मिटे। गुरू के हे दाया, टूटे माया, मोह फाँस ले, शिष्य छुटे ।।

कविता

उभरे जब प्रतिबिम्ब हा, धर आखर के रूप । देखावत दरपण असन, दुनिया के प्रतिरूप ।। दुनिया के प्रतिरूप, दोष गुण ला देखाये । कइसे हवय समाज, समाजे ला बतलाये ।। सुनलव कहय ‘रमेश‘, शब्द जब घाते निखरे । मन के उपजे भाव, तभे कविता बन उभरे ।।2।।

दोहा-ददरिया

नायक हसिया धर कांदी लुये, तैं हर धनहा पार । गोई तोला देख के, आवत हवे अजार ।।   नायिका जा रे बिलवा भाग तैं, काबर आये हस पार । आवत हे मोरे ददा, पहिलि खुद ल सम्हार ।। नायक तोर मया ला पाय के, सुध बुध मैं भूलाय । काला संसो अउ फिकर, चाहे कोनो आय ।। नायिका धरे हवे लाठी ददा, आवत हाथ लमाय । छोड़ चटहरी भाग तैं, देही सबो भूलाय ।। नायक मया उलंबा होय हे, कहां हवे डर यार । तोला मे हर पाय बर, आय हवॅव ये पार ।।   नायिका जा जा जोही भाग तैं, तोरे मया अपार । तोरे घर ला मैं धनी, कर लेहूं ससुरार

कलाम ला सलाम

सुनले आज कलाम के, थोकिन तैं हर गोठ । जेन करे हे देश बर, काम बने तो पोठ ।। काम बने तो पोठ, करे हे ओ हमरे बर । बने मिसाइल मेन, बने ओ हमरे रहबर ।। षिक्षक बने महान,  ओखरे शिक्षा चुनले । हमरे भारत रत्न, रहिस शिक्षाविद सुुनले ।।         -रमेश चौहान

मुड धर कविता रोय

स्रोता बकता देख के, मुड धर कविता रोय । सुघ्घर कविता के मरम, जानय ना हर कोय ।। जानय ना हर कोय, अपन ओ जिम्मेदारी । दूअरथी ओ बोल, देत मारे किलकारी ।। ओखर होथे नाम, जेन देथे बड़ झटका । सुनत हवे सब हाॅस, मंच मा स्रोता बकता । आनी बानी गोठ कर, देखावत हे ठाठ एक गांठ हरदी धरे, मुसवा बइठे हाठ ।। मुसवा बइठे हाठ, भीड़ ला बने सकेले । जेखर बल ला पाय, होय बइला हूबेले ।। छटे सबो जब भीड़, फुटय ना मुॅह ले बानी । एके ठन हे गांठ, कहां हे आनी बानी ।। जइसे ओखर नाम हे, दिखे कहां हे काम । कड़हा कड़हा बेच के, पूरा मांगे दाम ।। पूरा मांगे दाम, अपन लेवाल ल पाये । मिलावटी हे झार, तभो सबला भरमाये ।। चिन्हे ना सब सोन, सोन पालिस हे कइसे । बेचे से हे काम, बेचा जय ओहर जइसे ।।

भारत माता तोर तो, परत हवन हम पांव

भारत माता तोर तो, परत हवन हम पांव । देवत रहिबे जियत भर, सुख अचरा के छांव ।। सुख अचरा के छांव, हमर मुड़ ढांके रहिबे । हमन हवन नादान, हमर गलती का कहिबे ।। कोरा मा हन तोर, हमर रखबे तैं बाता । लइका हन हम तोर, हमर तैं भारत माता । महतारी तैं तो हवस, सुख षांति के खान । कहां सृष्टि मा अउ हवय, तोरे असन महान ।। तोरे असन महान, जिहां जमुना गंगा हे । कहां हिमालय चोटि , जिहां कंचन जंगा हे ।। राम रहिम इक संग, करत तो हे बलिहारी ।। करत हवे जयकार, तोर जय हो महतारी ।। तोरे सेवा ला करत, जेन होय कुर्बान । लड़त लड़त तोर बर, गवाय जेन परान ।। गवाय जेन परान, वीर सेना के सेनानी । अइसन तोर सपूत, जेन दे हे कुर्बानी ।। सबो शहिद के पांव, परत हन हाथे जोरे । माथा अपन मढ़ाय, पांव मा दाई तोरे ।।

सुन सुन ओ पगुराय

धर मांदर संस्कार के, तैं हर ताल बजाय । भइसा आघू बीन कस, सुन सुन ओ पगुराय ।। सुन सुन ओ पगुराय, निकाले बोजे चारा । दूसर बाचा मान, खाय हे ओ हर झारा ।। परदेषिया भगाय, हमर पुरखा हा मर मर । ओमन मेछरावत, ऊंखरे बाचा ला धर ।।

ठाने हन हम छोकरी

दुरगा चण्ड़ी के देस मा, नारी हवय महान । करत हवे सब काम ला, अबला झन तैं जान ।। अबला झन तैं जान, पुरूस ले अब का कम हे । देख ओखरे काम, पुरूस जइसे तो दम हे ।। धरती ले आगास, जेन लहराये झण्ड़ी । सेना पुलिस काम, करे बन दुरगा चण्ड़ी ।।  ठाने हन हम छोकरी, करना हे हर काम । माने जेला छोकरा, केवल अपने नाम ।। केवल अपने नाम, जगत मा हे अब करना । नई हवे मंजूर, पांव के दासी रहना ।। चार दुवारी छोड़, जगत ला अपने माने । कठिन कठिन हर काम, करे बर हम तो ठाने ।।

ना नर गरू ना नार

नारी ले नर होत हे, नर ले होये नार । नर नारी के मेल ले, बसे हवे संसार ।। बसे हवे संसार, कदर हे एक बराबर । ना नर गरू ना नार, अहम के झगरा काबर ।। अहम वहम तैं मेट, मया ला करके भारी । नारी बिन ना मर्द, मर्द बिन ना नारी ।। 

राम कथा -राम मनखे काबर बनीस

मनखे मनखे सब सुनय, राम कथा मन लाय । कहय सुनय हर गांव मा, मनखे मन हरसाय ।। मनखे मन हरसाय, राम के महिमा सुन सुन । जागे एक सवाल, मोर मन मा तो सिरतुन ।। खोजव बने जवाब, जेन जाने हव तनके । भवसागर मा राम, बने हे काबर मनखे ।। हेतु अनेका जनम के, कोनो कहय विचार । विप्र धेनु अरू संत हित, लिन्ह मनुज अवतार ।। लिन्ह मनुज अवतार, विजय जय ला तारे बर । मेटे बर तो पाप, रावणे ला मारे बर ।। नारद के ओ श्राप, घला हा बने लपेटा । काला कहि हम ठोस, जनम के हेतु अनेका ।। सतजुग त्रेता के कथा, तैं हर सबो सुनाय । कलजुग मा का काम के, कारण जेन बताय ।। कारण जेन बताय, देख ओला आंखी ले । चलत हवे विज्ञान, खोजथे सब साखी ले ।। येही जुग के नाम, हवय गा पापी कलजुग । खाय तभे पतिआय,  कहां बाचे हे सतजुग ।। मरयादा ला राम हा, जी  के तो देखाय । जइसे के विज्ञान हा, कारण देत जनाय ।। कारण देत जनाय, बने ओ काबर मनखे । मनखे के मरजाद, बनाये हे छन छन के ।। कसे कसौटी देख, राम के हर वादा । मनखे कइसे होय, होय कइसे  मरयादा ।। कारण केवल एक हे, जेखर बर ओ आय । मनखे बन भगवान हा, मनखे ला सीखाय ।। मनखे ला सीखाय, होय मनखे

बुड्ती हा लागत हे उत्ती

बुड़ती ले उत्ती डहर, चलत हवे परकास । भले सुरूज उत्ती उगय, अंतस धरे उजास । अंतस धरे उजास, कोन झांके हे ओला । आंखी आघू देख, सबो बदले हे चोला ।। चले भेडि़या चाल, बिसारे अपने सुरती । उत्ती ला सब छोड़, देखथे काबर बुड़ती ।। जेती ले निकले सुरूज, ऊंहा होय बिहान । बुड़े जिहां जाके सुरूज, रतिहा ऊंहा जान ।। रतिहा ऊंहा जान, जिहां सब बनावटी हे । चकाचैंध के घात, चीज सब सजावटी हे ।। पूछत हवे ‘रमेश‘,  तुमन जाहव गा केती । सिरतुन होय उजास, सुरूज हा होथे जेती ।। उत्ती के बेरा सुरूज, लगथे कतका नीक । उवत सुरूज ला देख के, आथे काबर छीक ।। आथे काबर छीक, करे कोनो हे सुरता । जींस पेंट फटकाय, छोड़ के अपने कुरता ।। सुरूज ढले के बाद, जले हे दीया बत्ती । बुड़ती नजर जमाय, खड़े काबर हे उत्ती ।।

दाई बेटा ले कहे

दाई बेटा ले कहे, तैं करेजा हस मोर । जब बेटा हा बाढ़ गे, सपना ला दिस टोर ।। सपना ला दिस टोर, आन ला जिगर बसाये । छोड़े घर परिवार, जवानी अपन देखाये ।। सुन लव कहे ‘रमेश‘, सोच के करव सफाई । दुनिया के भगवान, तोर बर तोरे दाई ।।

उठ तैं भिनसार

छोड़ अलाली जाग तैं, होगे हवय बिहान । चढ़त जात हे गा सुरूज, देख निहार मितान ।। देख निहार मितान, डोहड़ी घला फूलगे । चिरई चिरगुन बोल,  हवा मा कइसे मिलगे । हवा लगत हे नीक, नीक हे बादर लाली । उत्ती बेरा देख, जाग तैं छोड़ अलाली ।। कुकरा हा भिनसार के, बोलत हे गा बोल । जाग कुकरू कू जाग तैं, अपन निंद ला खोल ।। अपन निंद ला खोल, छोड़ खटिया पलंग गा । घूमव जाके खार, बनव संगी मतंग गा ।। कर लव कुछु व्यायाम, बात ला झन तो ठुकरा । घेरी घेरी बेर, कुकरू कू बोलत कुकरा ।। पुरवाही सुघ्घर चलत, गुदगुदात हे देह । तन मन पाये ताजगी, जेन करे हे नेह ।। जेन करे हे नेह, बिहनिया ले जागे हे । खुल्ला जगह म घूम, हवा ला जे पागे हे ।। धरती के सिंगार, सबो के मन ला भाही । उठ तैं भिनसार, चलत सुघ्घर पुरवाही ।।

बिचारा हा अनाथ बन

लइकापन ओ छोड़ के, बनगे हवय सियान । करय काम ओ पेट बर, देवय कोने ध्यान ।। देवय कोने ध्यान, बुता ओ काबर करथे । लइकामन ला छोड़, ददा हा काबर मरथे ।। सहय समय के मार, बिचारा हा अनाथ बन । करत करत काम, छुटे ओखर लइकापन ।।

कतका तैं इतराय हस

राम राम कह राम, जगत ले तोला तरना । आज नही ता काल, सबो ला तो हे मरना ।। मृत्युलोक हे नाम, कोन हे अमर जगत मा । जप ले सीताराम, मिले हे जेन फकत मा ।। अपन उमर भर देख ले, का खोये का पाय हस । लइका पन ले आज तक, कतका तैं इतराय हस ।।

अटकन बटकन दही चटाका

चौपाई छंद अटकन बटकन दही चटाका । झर झर पानी गिरे रचाका लउहा-लाटा बन के कांटा । चिखला हा गरीब के बांटा तुहुुर-तुहुर पानी हा आवय । हमर छानही चूहत जावय सावन म करेला हा पाके । करू करू काबर दुनिया लागे चल चल बेटी गंगा जाबो । जिहां छूटकारा हम पाबो गंगा ले गोदावरी चलिन । मरीन काबर हम अलिन-गलिन पाका पाका बेल ल खाबो । हमन मुक्ति के मारग पाबो छुये बेल के डारा टूटे । जीये के सब आसा छूटे भरे कटोरा हमरे फूटे । प्राण देह ले जइसे छूटे काऊ माऊ छाये जाला । दुनिया लागे घात बवाला -रमेश चौहान

हमर जुन्ना खेल

कुण्‍डलियां गिल्ली डंडा खेलबो, चल संगी दइहान । गोला घेरा खिच के, पादी लेबो तान । पादी लेबो तान, खेलबो सबो थकत  ले । देबोे संगी दांव, फेर तो हमन सकत ले ।।। अभी जात हन स्कूल, उड़ावा मत जी खिल्ली । पढ़ लिख के हम सांझ, खेलबो फेरे गिल्ली ।। चलव सहेली खेलबो, जुर मिल फुगड़ी खेल । माड़ी मोड़े देख ले, होथे पावे के मेल ।। होथे पांवे के मेल, करत आघू अउ पाछू । सांस भरे के खेल, काम आही ओ आघू ।। पुरखा के ये खेल, लगय काबर ओ पहेली । घर पैठा रेंगान, खेलबो चलव सहेेली ।। अटकन बटकन गीन ले, सबो पसारे हाथ । दही चटाका बोल के, रहिबो संगे साथ ।। रहिबो संगे साथ, लऊहा लाटा बन के । कांटा सूजी छांट, काय लेबे तैं तन के ।। कांऊ मांऊ बोल, कान धर लव रे झटकन । कतका सुघ्घर खेल, हवय गा अटकन बटकन ।। नेती भवरा गूंथ के, दे ओला तैं फेक । घूमे लगाय रट्ट हे, आंखी गड़ाय देख ।। आंखी गड़ाय देख, खेल जुन्ना कइसे हे । लकड़ी काढ़ बनाय,  बिही के फर जइसे हे ।। लगय हाथ के जादू, जेन हर तोरे सेती । फरिया डोरी सांट, बनाले तैं हर नेती ।। धर के डंडा हाथ मा, ऊपर तैं हर टांग । हम तो ओला कोलबो, जावय बने उचांग ।। जावय बने उचांग, फेर तो डंडा

वाह रे तैं तो मनखे

मनखे काबर तैं करे, अइसन कोनो काम । जगह जगह ला छेक के, अपन बिगाड़े धाम ।। अपन बिगाड़े धाम, कोन ला हे गा भाये । चाकर रद्दा छोड़, कोलकी जउन बसाये ।। रोके तोला जेन, ओखरे बर तैं सनके । मनखे मनखे कहय, वाह रे तैं तो मनखे ।। कइसे ये दुनिया हवय, बनथे खुद निरदोस । अपन आप ला छोड़ के, दे दूसर ला दोस ।। दे दूसर ला दोस, दोस ला अपन लुकावै घेरी बेरी दोस, जमाना के बतलावै ।। होवत दुरगति गांव, बनेे सब पथरा जइसे । पथरा के भगवान, देख मनखे हे कइसे ।।

अंधा हे कानून हा

अंधा हे कानून हा, कहिथे मनखे झार । धरे तराजू हाथ मा, खड़े हवय दरबार ।। खड़े हवय दरबार, बांध आंखी मा पट्टी । धनी गुणी के खेल, बने हे जइसे बट्टी ।। समझय कहां गरीब, हवय ये कइसन धंधा । मनखे मनखे देख, जेन बन जाथे अंधा ।। -रमेश चौहान

जगत अच्छा हे कइसे

जइसे दुनिया  हे बने, ओइसने हे आज । अपन सोच अनुसार तैं, करथस अपने काज ।। करथस अपने काज, सही ओही ला माने । दूसर के ओ सोच, कहां तैं हर पहिचाने ।। अंतस अपने झांक, जगत अच्छा हे कइसे । जगत दिखे हे साफ, सोच हे तोरे जइसे ।।

लख चौरासी तैं भटक

लख चैरासी तैं भटक, पाय मनुज के देह । ऐती-तेती देख झन, कर ले प्रभु मा नेह ।। का लेके तैं आय हस, का ले जाबे साथ । आना खाली हाथ हे, जाना खाली हाथ ।। अगम गहिर जग रीत हे, निभा सकय ना जीव । राम राम भज राम तैं, भजे हवय गा सीव ।। कहे हवय सतसंग के, घाते महिमा संत । संत चरण मा जायके, अपन बना ले कंत ।।

छोड़ जगत के आस ला

दुनिया मा तैं आय के, माया मा लपटाय । असल खजाना छोड़ के, नकली ला तैं भाय ।। असल व्यपारी हे कहां, नकली के भरमार । कोनो पूछय ना असल, जग के खरीददार ।। का राखे हे देह के, माटी चोला जान । जाना चोला छोड़ के, झन कर गरब गुमान ।। कागज के डोंगा बनक, बने देह हा तोर । नदिया के मजधार मा, देही तोला बोर ।। परे विपत मा देख ले, आथे कोने काम ।। छोड़ जगत के आस ला, भज ले सीताराम ।

मेेनी हेप्पी बड्ड डे

मोर छोटे भाई के पुुत्र के काल 7-6-15 के  जनम दिन रहिस......... --------------------------------- दोहा गीत  मेेनी हेप्पी बड्ड डे, आज जनम दिन तोर । तोर जनम दिन आज हे, बेटा मोरे लाल । बड़े बाढ़ तैं एक दिन, करबे खूब कमाल ।। चारो कोती एक दिन, होही तोरे सोर ।। मेेनी हेप्पी बड्ड डे,......... बेटा राजा मोर तैं, चांद सुरूज तो आस । चमकत रहिबे जस सुरूज, जीवन के आगास ।। बने रहय हर हाल मा, खिल-खिल हॅॅसना तोर । मेेनी हेप्पी बड्ड डे,........ गाड़ा गाड़ा आसिसे, तोला हम तो देत । लाख बरीसे ले उमर, जम्मा खुसी समेट ।। होवय गा फुरमान सब,  जम्मा असीस मोर ।। मेेनी हेप्पी बड्ड डे,........ -रमेश चौहान

पइसा धरे खरीद

दुनिया के हर चीज ला, पइसा धरे खरीद । कहिथे गा धनवान मन, हाथे धरे रसीद ।। हाथ धरे रसीद, कहे मनखे तक बिकथे । नैतिकता ला आज, जगत मा कोने रखथे ।। सुनलव कहय ‘रमेश‘, मया तो हे बैगुनिया । दया मया भगवान, बिके ना कोनो  दुनिया ।। -रमेश चौहान

आंसू ढारे देख

जबतक बिहाव होय ना, बेटा तबतक तोर । आय सुवारी ओखरे, बिसरे तोरे सोर ।। बिसरे तोरे सोर, अपन ओ मया भुलाये । रीत जगत के जान , ददा काबर झल्लाये । देखव जगत ‘रमेश‘, तोर बेटी हे कबतक । आंसू ढारे देख, चले स्वासा हे जबतक ।।

सावन झूला झूलबो

सावन झूला झूलबो, बांधे अमुवा डार । पुरवाही सुघ्घर चलत, होके देख मतंग । चल ओ राधा गोमती, मीना ला कर संग । मितानीन हे संग मा, धरे सहेली चार ।। सावन...... झिमिर झिमिर पानी गिरे, नाचे मनुवा मोर । चीं-चीं चिरई हा करत, देवत मधुरस घोर । हरियर हरियर हे गजब, चारो कोती खार  ।। सावन.... छुये हवा जब देह ला, रोम रोम खिल जाय । झूला झूलत देख के, कोन नई हरसाय ।। सरर सरर झूला चले, चुनरी उड़े हमार ।। सावन.... महर महर ममहाय हे, कतका फूले फूल । भवरा बइठे फूल मा, रस चूहे मा मसगूल ।। देख सखी तै संग मा, आके संग हमार ।। सावन.....

कब बोवाही धान

हवय अहंदा खेत हा, कब बोवाही धान । रोज रोज पानी गिरे, मुड़ धर कहे किसान । मुड़ धर कहे किसान, रगी अब तो कब होही । बता ददा भगवान, धान किसान कब बोही ।। कइसन लीला तोर, लगे काहेक छदंहा । बरसे पानी रोज, खेत हा हवय अहंदा ।।

पाना डारा ले लगे

पाना डारा ले लगे, नाचय कतका झूम । हरियर हरियर रंग ले, मन ला लेवय चूम ।। मन ला लेवय चूम, जेन देखय जी ओला । जब ले छोड़े पेड़, परे हे पाना कोला ।। खूंदय कचरय देख, आदमी मन अब झारा । कचरा होगे नाम, रहिस जे पाना डारा ।।

मोर दूसर ब्लॉग