चुन्दी (कुण्डलियां) चुन्दी बगरे हे मुड़ी, जस कोनो फड़बाज। लम्बा-लम्बा ठाढ़ हे, जइसे के लठबाज ।। जइसे के लठबाज, तने हे ठाढ़े-ठाढ़े । कंघी के का काम, सरत हे माढ़े-माढ़े ।। मुसवा दे हे चान, खालहे ला जस बुन्दी । आज काल के बात, मुड़ी मा बगरे चुन्दी ।। -रमेश चौहान
लखनऊ की जीवंत सांस्कृतिक परम्परा है “मेटाफर लिटफेस्ट
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डॉ अलका सिंह, शिक्षक, डॉ राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविधालय, लखनऊ
साहित्य संस्कृतियों का परिचायक है और संस्कृतियां साहित्य की श्रीवृद्धि करती
हैं।...
2 दिन पहले