सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कतका झन देखे हें-

तर्क ज्ञान विज्ञान कसौटी

तर्क ज्ञान विज्ञान कसौटी, पढ़ई-लिखई के जर आवय । काबर कइसे प्रश्न खड़ा हो, जिज्ञासा ला हमर बढ़ावय ।। रटे-रूटाये तोता जइसे, अक्कल ला ठेंगा देखावय । डिग्री-डिग्री के पोथा धर के, ज्ञानी-मानी खुदे कहावय ।। जिहां तर्क के जरूरत होथे, फांदे ना अक्कल के नांगर । आस्था ला टोरे-भांजे बर, अपन चलावत रहिथे जांगर ।। ज्ञान परे आखर पोथी ले, कतको अनपढ़ ज्ञानी हावय । सृष्टि नियम विज्ञान खोजथे, ललक-सनक ला जेने भावय ।। सुख बीजा विज्ञान खोचथे, भौतिक सुविधा ला सिरजावय । खुद करके देखय अउ जानय, वोही हा विज्ञान कहावय ।। सृष्टि रीत जे जानय मानय, मानवता जे हर अपनावय । अंतस सुख के जे बीजा बोवय, वो ज्ञानी आदमी कहावय ।। एक ध्येय ज्ञानी विज्ञानी के, मनखे जीवन डगर बहारय । एक लक्ष्य अध्यात्म धर्म के, मनखे मन के सोच सवारय ।। अपन सुवारथ लाग-लपेटा, फेर कहां ले मनखे पावय । अपने घर परिवार बिसारे, अपने भर ला कइसे भावय ।। 

खून पसीना मा झगरा हे

खून पसीना मा झगरा हे, परे जगत के फेर बने-बुनाये सड़क एक बर, सरपट-सरपट दउड़े । एक पैयडगरी गढ़त हवे अपन भाग ला डउडे़ ।। (डउड़ना-सवारना) केवल अधिकार एक जानय, एक करम के टेर जेन खून के जाये होथे, ओखर चस्मा हरियर । जेन पसीना ला बोहाथे, ओखर मन हा फरियर ।। एक धरे हे सोना चांदी, दूसर कासा नेर ।।

बरखा ला फोन करे हे

नवगीत मोर गांव के धनहा-डोली, बरखा ला फोन करे हे । तोर ठिठोली देखत-देखत, छाती हा मोर जरे हे ।। रोंवा-रोंवा पथरा होगे, परवत होगे काया । पानी-माटी के तन हा मोरे समझय कइसे माया धान-पान के बाढ़त बिरवा, मुरछा खाय परे हे एको लोटा पानी भेजव, मुँह म छिटा मारे बर कोरा के लइका चिहरत हे, येला पुचकारे बर अब जिनगी के भार भरोसा ऊपर तोर धरे हे फूदक-फुदक के गाही गाना, तोर दरस ला पाके घेरी-घेरी माथ नवाही तोर पाँव मा जाके कतका दिन के बिसरे हावस सुन्ना इहां परे हे ।

करम बड़े के भाग

फांदा मा चिरई फसे, काखर हावे दोष । भूख मिटाये के करम, या किस्मत के रोष ।। या किस्मत के रोष, काल बनके हे आये । करम बड़े के भाग, समझ मोला कुछु ना आये ।। सोचत हवे ‘रमेश‘, अरझ दुनिया के थांघा । काखर हावे दोष, फसे चिरई हा फांदा ।।

पहा जथे हर रात, पहाती बेरा देखत

देखत कारी रात ला, मन मा आथे सोच । कुलुप अंधियारी हवय, खाही हमला नोच । खाही हमला नोच, हमन बाचन नहिं अब रे । पता नही भगवान, रात ये कटही कब रे ।। धर ले गोठ ‘रमेश‘, अपन मन ला तैं सेकत । पहा जथे हर रात, पहाती बेरा देखत ।

लंबा लबरा जीभ

खाये भर बर तो हस नही, लंबा लबरा जीभ । बोली बतरस मा घला, गुरतुर-गुरतुर नीभ ।। गुरतुर-गुरतुर नीभ, स्वाद दूनों तैं जाने । करू-करू के मीठ,  बने कोने ला तैं माने ।। पूछत हवय ‘रमेश‘,  मजा कामा तैं पाये । गुरतुर बोली छोड़, मीठ कतका तैं खाये ।।

आंगा-भारू लागथे

आंगा-भारू लागथे, हमरे देश समाज । समझ नई आवय कुछुच, का हे येखर राज ।। का हे येखर राज, भरे के अउ भरते हे । दुच्छा वाले आज, झरे ऊँपर झरते हे ।। सोचत हवे ‘रमेश‘, जगत हे गंगा बारू । माने मा हे देव, नहीं ता आंगा-भारू ।।

करम तोर पहिचान हे

अपने ला पहिचान, देह हस के तैं आत्मा । पाँच तत्व के देह, जेखरे होथे खात्मा ।। देह तत्व ले आन, अमर आत्मा हा होथे । करे देह ला यंत्र, करम फल ला वो बोथे ।। रंग-रूप ला छोड़ के, करम तोर पहिचान हे । मनखेपन ला मान,  तोर येही अभिमान हे ।।

बरवै छंद

1. हमर गाँव के धरती, सबले पोठ । गुरतुर भाखा बोली, गुरतुर गोठ ।। 2. तुँहर पेट ला भरथे, हमर किसान । मन ले कर लौ संगी, ओखर मान ।। 3. झूठ लबारी के हे, दिन तो चार । सत के सत्ता होथे, बरस हजार ।। 4. सत के रद्दा मा तो  हे भगवान । मोर गोठ ला संगी, सिरतुन जान ।। 5.जइसन बीजा होथे, तइसन झाड़ । सोच-समझ के संगी,  रद्दा बाढ़ ।। 6. सुख-दुख हा तो होथे, जस दिन रात । एक-एक कर आथे, सिरतुन बात ।। 7. धरम करम मा बड़का, होथे कोन । करम धरम ला गढ़थे, होके मोन ।। 8. बेजाकब्जा छाये, जम्मो गाँव । तोपा गे रूख-राई, बर के छाँव ।। 9.शिक्षा मा तो चाही, अब संस्कार । तब ना तो मिटही गा, भ्रष्टाचार ।। 10 घुसखोरी ले बड़का, भ्रष्टाचार । येला छोड़े बर तो, देश लचार ।

ये गांव ए (मधुमालती छंद)

सुन गोठ ला, ये गांव के। ये देश के, आें ठांव के जे देश के, अभिमान हे । संस्कार के पहिचान हे परिवार कस, सब संग मा, हर बात मा, हर रंग मा बड़ छोट सब, हा एक हे । हर आदमी, बड़ नेक हे दुख आन के, जब देखथें । निज जान के, सब भोगथे जब देखथे, सुख आन के । तब नाचथे, ओ तान के हर रीत ला, सब जानथें । मिल संग मा, सब मानथें हर पर्व के, हर ढंग ला । रग राखथे, हर रंग ला ओ खेत मा, अउ खार मा । ओ मेढ़ मा, अउ पार मा बस काम ला, ओ जानथे । भगवान कस, तो मानथे संबंध ला, सब बांध के । अउ प्रीत ला, तो छांद के निक बात ला, सब मानथे । सब नीत ला, भल जानथे चल खेत मा, ये बेटवा । मत घूम तैं, बन लेठवा कह बाप हा, धर हाथ ला । तैं छोड़ झन, गा साथ ला ये देश के, बड़ शान हे । जेखर इहां तो मान हे ये गांव ए, ये गांव ए । ए स्वर्ग ले, निक ठांव ए

हे काम पूजा

तैं बात सुन्ना । अउ बने गुन्ना जी भर कमाना । भर पेट खाना ये पूट पूजा । ना करे दूजा जीनगी जीबे । जब काम पीबे बिन काम जोही । का तोर होही हे पेट खाली । ना बजे ताली ये एक बीता । हे रोज रीता तैं भरे पाबे । जब तैं कमाबे परिवार ठाढ़े । अउ बुता बाढ़े ना हाथ पैसा । परिवार कैसा जब जनम पाये । दूधे अघाये जब गोड़ पाये । तब ददा लाये खाई खजेना । तैं हाथ लेना लइका कहाये । खेले भुलाये ना कभू सोचे । कुछु बात खोचे काखर भरोसा । पांचे परोसा आये जवानी । धरके कहानी अब काम खोजे । दिन रात रोजे पर के सपेटा । खाये चपेटा तैं तभे जाने । अउ बने माने संसार होथे । दुख दरद बोथे जब हाथ कामे । तब होय नामे तैं बुता पाये । दुनिया बसाये दिन रात फेरे । जांगर ल पेरे ये पेट सेती । तैं करे खेती प्रिवार पोसे । बिन भाग कोसे बस बुता कामे । कर हाथ ताने जब काम होथे । सब मया बोथे बेरा पहागे । जांगर सिरागे डोकरा खॉसे । छोकरा हॉसे

अरे दुख-पीरा तैं मोला का डेरुहाबे

अरे दुख पीरा, तैं  मोला का डेरूहाबे मैं  पर्वत के पथरा जइसे, ठाढ़े रहिहूँव । हाले-डोले बिना, एक जगह माढ़े रहिहूँव जब तैं  चारो कोती ले बडोरा बनके आबे अरे दुख पीरा, तैं मोला का डेरूहाबे मैं लोहा फौलादी हीरा बन जाहूँ तोर सबो ताप, चुन्दी मा सह जाहूँ जब तैं दहक-दहक के आगी-अंगरा बरसाबे अरे दुख पीरा, तैं  मोला का डेरूहाबे बन अगस्त के हाथ पसेरी अपन हाथ लमाहूँ सागर के जतका पानी चूल्लू मा पी जाहूँ, जब तैं इंद्र कस पूरा-पानी तै बरसाबे अरे दुख पीरा, तैं  मोला का डेरूहाबे

गलती ले बड़का सजा

लगे काम के छूटना, जीयत-जागत मौत । गलती ले बड़का सजा, भाग करम के सौत ।। भाग करम के सौत, उठा पटकी खेलत हे । काला देवय दोष, अपने अपन  झेलत हे ।। ‘रमेश‘ बर कानून, न्याय बस हवय नाम के । चिंता करथे कोन, कोखरो लगे काम के ।।

कवि मनोज श्रीवास्तव

घोठा के धुर्रा माटी मा, जनमे पले बढ़े हे नवागढ़ के फुतकी, चुपरे हे नाम मा । हास्य व्यंग के तीर ला, आखर-आखर बांध आघू हवे अघुवाई, संचालन काम मा । धीर-वीर गंभीर हो, गोठ-बात पोठ करे रद्दा-रद्दा आँखी गाड़े, कविता के खोज मा । घोठा अउ नवागढ़, बड़ इतरावत हे श्यामबिहारी के टूरा, देहाती मनोज मा ।। -रमेश चौहान

बेरोजगारी (सुंदरी सवैया)

नदिया-नरवा जलधार बिना, जइसे अपने सब इज्जत खोथे । मनखे मन काम बिना जग मा, दिनरात मुड़ी धर के बड़ रोथे ।। बिन काम-बुता मुरदा जइसे, दिनरात चिता बन के बरथे गा । मनखे मन जीयत-जागत तो, पथरा-कचरा जइसे रहिथे गा ।। सुखयार बने लइकापन मा, पढ़ई-लिखई करके बइठे हे । अब जांगर पेरय ओ कइसे, मछरी जइसे बड़ तो अइठे हे ।। जब काम -बुता कुछु पावय ना, मिन-मेख करे पढ़ई-लिखई मा बन पावय ना बनिहार घला,  अब लोफड़ के जइसे दिखई मा ।। पढ़ई-लिखई गढ़थे भइया, दुनिया भर मा करमी अउ ज्ञानी । हमरे लइका मन काबर दिखते,  तब काम-बुता बर मांगत पानी । चुप-चाप अभे मत देखव गा,  गुण-दोष  ल जाँचव पढ़ई लिखई के । लइका मन जानय काम-बुता, कुछु कांहि उपाय करौ सिखई के ।।

मुक्तक -मया

सिलाये ओठ ला कइसे खोलंव । सुखाये  टोटा ले कइसे बोलंव । धनी के सुरता के ये नदिया मा ढरे आँखी ला तो पहिली धोलंव

मन के मइल (दुर्मिल सवैया)

जइसे तन धोथस तैं मल के, मन ला कब  धोथस गा तन के । तन मा जइसे बड़ रोग लगे, मन मा लगथे  बहुते छनके ।। मन देखत दूसर ला जलथे, जइसे जब देह बुखार धरे । मन के सब लालच केंसर हो, मन ला मुरदा कस खाक करे ।। मन के उपचार करे बर तो, दवई धर लौ निक सोच करे । मन के मइले तन ले बड़का, मन ला मल ले भल सोच धरे ।। मन लालच लोभ फसे रहिथे, भइसी जइसे चिखला म धसे । अपने मन सुग्घर तो कर लौ, जइसे तुहरे तन जोर कसे ।।

सरग-नरक

सरग-नरक हा मनोदशा हे, जे मन मा उपजे । बने करम हा सुख उपजाये, सरग जेन सिरजे ।। जेन करम हा दुख उपजाथे, नरक नाम धरथे । करम जगत के सार कहाथे, नाश-अमर करथे ।। बने करम तै काला कहिबे,  सोच बने धरले । दूसर ला कुछु दुख झन होवय, कुछुच काम करले ।। दूसर बर गड्ढा खनबे ता, नरक म तैं गिरबे । अपन करम ले कभू कोखरो, छाती झन चिरबे ।।

काबर डारे मोर ऊपर गलगल ले सोना पानी

काबर डारे मोर ऊपर, गलगल ले सोना पानी नवा जमाना के चलन ताम-झाम ला सब भाथें गुण-अवगुण देखय नही रंग-रूप मा मोहाथें मैं डालडा गरीब के संगी गढ़थव अपन कहानी चारदीवारी  के फइका दिन ब दिन टूटत हे लइका बच्चा मा भूलाये दाई-ददा छूटत हे मैं अढ़हा-गोढ़हा लइका दाई के करेजाचानी संस्कृति अउ संस्कार बर कोनो ना कोनो प्रश्न खड़े हे अपन गांव के चलन मिटाये बर देशी अंग्रेज के फौज खड़े हे मैं मंगल पाण्डेय लक्ष्मीबाई के जुबानी

भेड़िया धसान

212 222 221 222 12 कोन कहिथे का कहिथे भीड़ जानय नही बुद्धि  ला अपने ओही बेर तानय नही भेड़िया जइसे धसथे आघू पाछू सबो एकझन खुद ला मनखे आज मानय नही

समय म निश्चित बदलाव आथे

हर चढ़ाव के बाद फिसलाव आथे हर बहाव के बाद ठहराव आथे बंद होय चाहे चलय ये घड़ी हा हर समय म निश्चित बदलाव आथे

मुकतक (पीये बर पानी मिलत नई हे)

ऊपर वाले हा ढिलत नई हे हमरे भाखा ओ लिलत नई हे सेप्टिक बर आवय कहां ले पीये बर पानी मिलत नई हे -रमेश चौहान

मुक्तक (दूसर ला राखे बर चूरत हस)

अपने भाई ला बेघर करके बैरी माने तैं बंदूक धरके दूसर ला राखे बर चूरत हस अपने भेजा मा भूसा भरके -रमेश चौहान

हे गणनायक

हे गणनायक देव गजानन (मत्तगयंद सवैया) हे गणनायक देव गजानन राखव राखव लाज ल मोरे । ये जग मा सबले पहिली प्रभु भक्तन लेवन नाम ल तोरे । तोर ददा शिव शंकर आवय आवय तोर उमा महतारी ।। कोन इहां तुहरे गुण गावय हे महिमा जग मा बड़ भारी । राखय शर्त जभे शिवशंकर अव्वल घूमय सृष्टि ल जेने । देवन मा सबले पहिली अब देवन नायक होहय तेने ।। अव्वल फेर करे ठहरे प्रभु सृष्टिच मान ददा महतारी । कोन इहां तुहरे गुण गावय हे महिमा जग मा बड़ भारी ।। काम बुता शुरूवात करे बर होवय तोर गजानन पूजा । मेटस भक्तन के सब विध्न ल विघ्नविनाशक हे नहि दूजा ।। बुद्धि बने हमला प्रभु देवव हो मनखे हन मूरख भारी । कोन इहां तुहरे गुण गावय हे महिमा जग मा बड़ भारी ।

तीजा

  मत्तगयंद सवैया हे चहके बहिनी चिरई कस हॉसत गावत मानत तीजा । सोंध लगे मइके भुइया बड़ झोर भरे दरमी कस बीजा ।। ये करु भात ह मीठ जनावय डार मया परुसे जब दाई । लाय मयारु ददा लुगरा जब छांटत देखत हाँसय भाई ।।

तीजा-पोरा

आवत रहिथन मइके कतको, मिलय न एक सहेली । तीजा-पोरा के मौका मा, आथे सब बरपेली ।। ओही अँगना ओही चौरा, खोर-गली हे ओही । आय हवय सब सखी सहेली, लइकापन ला बोही । हमर नानपन के सुरता ला, धरे हवन हम ओली । तीजा-पोरा मा जुरिया के, करबो हँसी ठिठोली ।। तरिया नरवा घाट घठौंदा, जुरमिल के हम जाबो । जिनगी के चिंता ला छोड़े, लइका कस सुख पाबो ।। अपन-अपन सुख दुख ला हेरत, हरहिंछा बतियाबो । तीजा-पोरा संगे रहिके, अपन-अपन घर जाबो ।

पानी पानी अब चिहरत हस, सुनय कहां भगवान

नदिया छेके नरवा छेके, छेके हस गउठान । पानी पानी अब चिहरत हस, सुनय कहां भगवान ।। डहर गली अउ परिया छेके, छेके सड़क कछार । कुँवा बावली तरिया पाटे, पाटे नरवा पार ।। ऊँचा-ऊँचा महल बना के, मारत हवस शान । पानी पानी अब चिहरत हस, सुनय कहां भगवान ।। रूखवा काटे जंगल काटे, काटे हवस पहाड़ । अपन सुवारथ सब काम करे, धरती करे कबाड़ ।। बारी-बखरी धनहा बेचे, खोले हवस दुकान । पानी पानी अब चिहरत हस, सुनय कहां भगवान ।। गिट्टी पथरा अँगना रोपे, रोपे हस टाइल्स । धरती के पानी ला रोके, मारत हस स्टाइल्स ।। बोर खने हस बड़का-बड़का, पाबो कहिके मान । पानी पानी अब चिहरत हस, सुनय कहां भगवान ।।

कइसे जी भगवान

जर भुंजा गे खेत मा, बोये हमरे धान । तन लेसागे हे हमर, कइसे जी भगवान ।। तरसत हन हम बूंद बर, धरती गे हे सूख । बरस आय ये तीसरा, पीयासे हे रूख ।। ठोम्हा भर पानी नही, कइसे रखब परान । तन लेसागे हे हमर, कइसे जी भगवान ।। खेत-खार पटपर परे, फूटे हवय दरार । नदिया तरिया नल कुँवा, सुख्खा हावे झार ।। हउला बाल्टी डेचकी, मूंदे आँखी कान । तन लेसागे हे हमर, कइसे जी भगवान ।। बादर होगे दोगला, मनखे जइसे आज । चीं-ची चिरई मन कहय, पापी मन के राज ।। मनखे हावय लालची, बेजाकब्जा तान । तन लेसागे हे हमर, कइसे जी भगवान ।।

हे जीवन दानी, दे-दे पानी

हे करिया बादर, बिसरे काबर, तै बरसे बर पानी । करे दुवा भेदी, घटा सफेदी, होके जीवन दानी ।। कहूं हवय पूरा, पटके धूरा, इहां परे पटपर हे । तरसत हे प्राणी, मांगत पानी, कहां इहां नटवर हे ।। हे जीवन दानी, दे-दे पानी, अब हम जीबो कइसे । धरती के छाती, खेती-पाती, तरसे मछरी जइसे ।। पीये बर पानी, आँखी कानी, खोजय चारो कोती । बोर कुँआ तरिया, होगे परिया,  कहां बूंद भर मोती ।।

भारत भुईंया रोवत हे

आजादी के माला जपत काबर उलम्बा होवत हे एक रूख के थांघा होके, अलग-अलग डोलत हे एक गीत के सुर-ताल मा, अलगे बोली बोलत हे देश भक्ति के होली भूंज के होरा कस खोवत हे विरोध करे के नाम म मूंदें हे आँखी-कान अपने देष ला गारी देके मारत हावय शान राजनीति के गुस्सा ला देशद्रोह म धोवत हे अपन अधिकार बर घेरी-घेरी जेन हा नगाड़ा ढोकय कर्तव्य करे के पारी मा डफली ला घला रोकय आजादी के निरमल पानी मा जहर-महुरा घोरत हे गांव के गली परीया कतका झन मन छेके हे देश गांव के विकास के रद्दा कतका झन मन रोके हे अइसन लइका ला देख-देख भारत भुईंया रोवत हे

आगे सावन आगे ।

छागे छागे बादर करिया, आगे सावन आगे । झिमिर-झिमिर जब बरसे बदरा, मन मोरो हरियागे ।। हरियर हरियर डोली धनहा, हरियर हरियर परिया । नदिया नरवा छलकत हावे, छलकत हावे तरिया ।। दुलहन जइसे धरती लागय, देख सरग बउरागे । झिमिर-झिमिर जब बरसे बदरा, मन मोरो हरियागे ।। चिरई-चिरगुन गावय गाना, पेड़-रुख हा नाचय । संग मेचका झिंगुरा दुनो, वेद मंत्र ला बाचय ।। साज मोहरी डफड़ा जइसे, गड़गड़ बिजली लागे । झिमिर-झिमिर जब बरसे बदरा, मन मोरो हरियागे ।। नांगर-बइला टेक्टर मिल के, करे बियासी धनहा । निंदा निंदय बनिहारिन मन, बचय नही अब बन हा ।। करे किसानी किसनहा सबो, राग-पाग ला पागे । झिमिर-झिमिर जब बरसे बदरा, मन मोरो हरियागे ।।

ढल देश के हर ढंग मा

चल संग मा चल संग मा, ढल देश के हर ढंग मा । धरती जिहां जननी हवे, सुख बांटथे हर रंग मा ।। मनका सबो गर माल के, सब एक हो धर के मया । मनखे सही मनखे सबो, कर लौ बने मनखे दया ।। भटके कहां घर छोड़ के, धर बात ला तैं आन के । सपना गढ़े हस नाश के, बड़ शत्रु हमला मान के ।। हम संग मा हर पाँव मा, मिल रेंगबो हर हाल मा । घर वापसी कर ले अभी, अब रेंग ले भल चाल मा ।। अकड़े कहूं अब थोरको, सुन कान तैं अब खोल के । बचबे नहीं जग घूम के, अब शत्रु कस कुछु बोल के ।। कुशियार कस हम फाकबो, हसिया धरे अब हाथ मा । कांदी लुये कस बूचबो, अउ लेसबो अब साथ मा ।।

बदरा, मोरे अँगना कब आबे

जोहत-जोहत रद्दा तोरे, आँखी मोरे प थरा गे । दुनिया भर मा घूमत हस तैं, मोरे अँगना कब आबे । ओ अषाढ़ के जोहत-जोहत, आसो के सावन आगे । नदिया-तरिया सुख्खा-सुख्खा, अउ धरती घला अटागे । रिबी-रिबी लइका मन होवय, बोरिंग तीर मा जाके । घेरी- घेरी दाई उन्खर, सरकारी नल ला झाके । बूंद-बूंद पानी बर बदरा, बन चातक तोला ताके । थूकव बैरी गुस्सा अपने, अब बरसव रंग जमाके ।। खेत-खार हा सुख्खा-सुख्खा, नांगर बइला बउरागे । धान-पान के बाते छोड़व, कांदी-कचरा ना जागे ।। आन भरोसा कब तक जीबो, करजा-बोड़ी ला लाके । पर घर के चाउर भाजी ला, हड़िया चूल्हा हा झाके । चाल-ढ़ाल ला तोरे देखत, चिरई-चिरगुन तक हापे । गुजर-बसर अब कइसे होही, तन-मन हा मोरो कापे ।। जीवन सब ला देथस बदरा, काल असन काबर झाके । थूकव बैरी गुस्सा अपने, अब बरसव रंग जमाके ।।

मोर सपना के भारत

मोरे सपना के भारत मा, हर हाथ म हे काम । जाति-धर्म के बंधन तोड़े, मनखे एक समान ।। लूट-छूट के रीति नई हे, सब बर एके दाम । नेता होवय के मतदाता, होवय लक्ष्मण राम ।। प्रांत-प्रांत के सीमा बोली, खिचय न एको डाड़ । नदिया जस सागर मिलय, करय न चिटुक बिगाड़ ।। भले करय सत्ता के निंदा, छूट रहय हर हाल । फेर देश ला गारी देवय, निछब ओखरे खाल ।। जेन देश के चिंता छोड़े, अपने करय विचार । मांगय झन अइसन मनखे, अपन मूल अधिकार ।। न्याय तंत्र होय सरल सीधा, मेटे हर जंजाल । लूटय झन कोनो निर्धन के, खून पसीना माल ।। लोकतंत्र के परिभाषा ला, सिरतुन करबो पोठ । वोट होय आधा ले जादा, तभे करय ओ गोठ ।। संविधान के आत्मा जागय, रहय धर्म निरपेक्ष । आंगा भारू रहय न कोनो, टूटय सब सापेक्ष ।। मौला पंड़ित मानय मत अब, नेता अउ सरकार । धरम-करम होवय केवल, जनता के अधिकार । देश प्रेम धर्म बड़े सबले, सब बर जरूरी होय । देश धर्म ला जे ना मानय, देश निकाला होय ।।

मुरकेटव ओखर, टोटा ला तो धर के

थपथपावत हे, बैरी आतंकी के पीठ मुसवा कस बइठे, बैरी कोने घर के। बिलई बन ताकव, सबो बिला ला झाकव मुरकेटव ओखर, टोटा ला तो धर के । आघू मा जेन खड़े हे, औजार धरे टोटा मा ओ तो पोसवा कुकुर,  भुके बाचा मान के । धर-धर दबोचव, मरघटिया बोजव जेन कुकर पोसे हे, ओला आघू लान के ।।

मैं छत्तीसगढ़िया हिन्दूस्तानी अंव

मैं छत्तीसगढ़िया हिन्दूस्तानी अंव महानदी निरमल गंगा के पानी अंव मैं राजीम जगन्नाथ के इटिका प्रयागराज जइसे फुरमानी अंव मैं भोरमदेव उज्जैन खजुराहो काशी के अवघरदानी अंव मैं बस्तर दंतेवाड़ा दंतेश्वरी भारत के करेजाचानी अंव मैं भिलाई फौलादी बाजू भारत भुईंया के जवानी अंव मोर कका-बबा जम्मो पीढ़ी के मैं रोवत-हँसत कहानी अंव जात-पात प्रांतवाद ले परे मैं भारत माता के जुबानी अंव

किसनहा गाँव के

नांगर बइला फांद, अर्र-तता रगियाये जब-जब धनहा मा, किसनहा गाँव के । दुनिया के रचयिता, जग पालन करता दुनिया ला सिरजाये, ब्रम्हा बिष्णु नाम के ।। धरती दाई के कोरा, अन्न धरे बोरा-बोरा दूनो हाथ उलचय, किसान के कोठी मा । तर-तर बोहावय, जब-तक ओ पसीना तब-तक जनाही ग, स्वाद तोर रोटी मा ।।

शौचालय बैरी हा, दुखवा बोवत हे

डोहारत-डोहारत, घर भर बर पानी मोरे कनिहा-कुबर, दाई टूटत हवे । खावब-पीयब अउ, रांधब-गढ़ब संग बाहिर-बट्टा होय ले, प्राण छूटत हवे ।। डोकरा-डोकरी संग, लइका मन घलोक घर म नहाबो कहि कहि पदोवत हे। कइसे कहंव दाई, नाम सफाई के धरे शौचालय बैरी हा, दुखवा बोवत हे ।।

देश भले बोहावय, धारे-धार बाट मा

जात-पात भाषा-बोली, अउ मजहबी गोठ राजनीति के चारा ले, पोठ होगे देश मा । टोटा-टोटा बांधे पट्टा, जस कुकुर पोसवा देश भर बगरे हे, आनी-बानी बेश मा । कोनो अगड़ी-पिछड़ी, कोनो हिन्दू-मुस्लिम कोनो-कोनो दलित हे, ये बंदर बाट मा । सब छावत हवय, बस अपने कुरिया देश भले बोहावय, धारे-धार बाट मा ।।

ये सरकारी चाउर

ये सरकारी चाउर, सरकारी शौचालय त परे-परे बनगे,  कोड़िया-अलाल के । जेला देखव कंगला, अपने ल बतावय गोठ उन्खर लगय, हमला कमाल के ।। फोकट म पाय बर, ओ ठेकवा देखावय । कसेली के दूध घीव, हउला म डार के । मन भर छेके हवे, गांव के गली परिया सड़क म बसे हवय, महल उजार के ।।

सभ्य बने के चक्कर मा

लइका दाई के दूध पिये, दाई-दाई चिल्लाथे । आया डब्बा के दूध पिये, अपने दाई बिसराथे।। जेने दाई अपने लइका, गोरस ला नई पियाये। घेरी-घेरी लालत ओला, जेने ये मान गिराये ।। सभ्य बने के चक्कर मा जे, अपन करेजा बिसराये । बोलव दुनिया वाले कइसे, ओही हा सम्य कहाये ।। दाई के गोरस कस होथे, देश राज के भाखा । पर के भाखा ओदर जाही, जइसे के छबना पाखा ।। म्याऊ-म्याऊ बोल-बोल के,  बिलई बनय नही तोता। छेरी पठरू संग रही के, बघवा होय नही थोथा ।। अपने गोरस अपने भाखा, अपने लइका ला दे दौ । देखा-सेखी छोड़-छाड़ के, संस्कारी बीजा बो दौ ।

पियासे ठाड़े जोहय, रद्दा एको बूंद के

करिया-करिया घटा, बड़ इतरावत बड़ मेछरावत, करत हवे ठठ्ठा । लुहुर-तुहुर कर, ठगनी कस ठगत बइठारत हवे, हमरे तो भठ्ठा ।। नदिया-तरिया कुँआ, घर के बोर बोरिंग पियासे ठाड़े जोहय, रद्दा एको बूंद के । कोन डहर बरसे, कोन डहर सोर हे बैरी हमरे गांव ला, छोड़े हवे कूंद के ।।

खोज खोज के मारव

कहाँ ले पाथे आतंकी, बैरी नकसली मन पेट भर भात अउ, हथियार हाथ मा । येमन तो मोहरा ये, असली बैरी होही हे जेन ह पइसा देके, खड़े हवे साथ मा ।। कोन धनवान अउ, कोन विदवान हवे पोषत हे जेन बैरी, अपनेच देश के । खोज खोज के मारव, मुँहलुकना मन ला येही असली बैरी हे, हमरेच देश के ।।

देश-भक्ति

हमर धरम तो बस एक हे । देश-भक्ति हा बड़ नेक हे जनम-भूमि जन्नत ले बड़े । जेखर बर बलिदानी खड़े मरना ले जीना हे बड़े । जीये बर जीवन हे पड़े छोड़ गोठ तैं अधिकार के । अपन करम कर तैं झार के अपने हिस्सा के काम ला । अपने हिस्सा के दाम ला करना हे अपने हाथ ले । भरना हे अपने हाथ ले बइमानी भ्रष्टाचार के। झूठ-मूठ के व्यवहार के जात-पात के सब ढाल ला । तोड़व ये अरझे जाल ला देश बड़े हे के प्रांत हो । सोचव संगी थोकिन शांत हो देश गढ़े बर सब हाथ दौ । आघू रेंगे बर सब साथ दौ मनखे-मनखे एके मान के । सबला तैं अपने जान के मया-प्रेम मा तैं बांध ले । ओखर पीरा अपने खांध ले  देश मोर हे ये मान ले । जीवन येखर बर ठान ले अपने माने मा तो तोर हे । नही त तोरे मन मा चोर हे

अपने घर मा खोजत हावे, कोनो एक ठिकाना

अपने घर मा खोजत हावे, कोनो एक ठिकाना । छत्तीसगढ़ी भाखा रोवय, थोकिन संग थिराना ।। सगा मनन घरोधिया होगे, घर के मन परदेशी । पाके आमा निमुवा होगे, निमुवा गुरतुर देशी ।। अपने घर के नोनी-बाबू, आने भाषा बोलय । भूत-प्रेत के छांव लगे कस, पर के धुन मा डोलय ।। अपन ठेकवा मा लाज लगय, पर के भाये दोना । दूध कसेली धरय न कोनो, करिया लागय सोना ।। सरग म मनखे कबतक रहिही, कभू त आही नीचे । मनखे के जर धरती मा हे, लेही ओला खीचे ।।

आँखी म निंदिया आवत नई हे

तोर बिना रे जोही आँखी म निंदिया आवत नई हे ऊबुक-चुबुक मनुवा करे सुरता के दहरा मा आँखी-आँखी रतिहा पहागे तोर मया के पहरा मा चम्मा-चमेली सेज-सुपेती मोला एको भावत नई हे तोर बिना रे जोही आँखी म निंदिया आवत नई हे मोर ओठ के दमकत रंग ह लाली ले कारी होगे आँखी के छलकत आंसू काजर ले भारी होगे अइसे पीरा देस रे छलिया छाती के पीरा जावत नई हे तोर बिना रे जोही आँखी म निंदिया आवत नई हे आनी-बानी सपना के बादर चारो कोती छाये हे तोरे मोहनी काया के फोटू घेरी-बेरी बनाये हे छाती म आगी दहकत हे बैरी पिरोहिल आवत नई हे तोर बिना रे जोही आँखी म निंदिया आवत नई हे

जनउला-दोहा

चित्र गुगल से साभार जनउला 1. हाड़ा गोड़ा हे नही, अँगुरी बिन हे बाँह । पोटारय ओ देह ला, जानव संगी काँह ।। 2. कउवा कस करिया हवय, ढेरा आटे डोर । फुदक-फुदक के पीठ मा, खेलय कोरे कोर ।। 3. पैरा पिकरी रूप के, कई कई हे रंग । गरमी अउ बरसात मा, रहिथे मनखे संग ।। 4. चारा चरय न खाय कुछु, पीथे भर ओ चॅूस । करिया झाड़ी मा रहय, कोरी खइखा ठूॅस ।। 5. संग म रहिथे रात दिन, जिनगी बनके तोर । दिखय न आँखी कोखरो, तब ले ओखर सोर ।। 6. हाथ उठा के कान धर, लहक-लहक के बोल । मया खड़े  परदेश  मा, बोले अंतस खोल ।। 7. बिन मुँह के ओ बोलथे, दुनियाभर के गोठ । रोज बिहनिया सज सवँर, घर-घर आथे पोठ ।। 8. मैं लकड़ी  कस डांड अंव, खंड़-खंड़ मोरे पेट । रांधे साग चिचोर ले, देके मोला रेट ।। 9. खीर बना या चाय रे, मोर बिना बेकार । तोरे मुँह के स्वाद अंव, मोरे नाव बिचार ।। 10. मोरे पत्ता फूल फर, आय साग के काम । मै तो रटहा पेड़ हंव, का हे मोरे नाम ।। 11. फरय न फूलय जान ले, पत्ता भर ले काम । जेखर बहुते शान हे, का हे ओखर नाम ।। 12.  नॉंगर-बइला हे नहीं, तभो जोतथे खेत । घंटा भ

मोर ददा के छठ्ठी हे

मोर ददा के छठ्ठी हे, नेवता हे झारा-झारा कथा के साधु बनिया जइसे मोर बबा बिसरावत गे आजे-काले करहू कहि-कहि ददा के छठ्ठी भूलावत गे सपना बबा ह देखत रहिगे टूटगे जीनगी के तारा नवा जमाना के नवा चलन हे बाबू मोरे मानव मोर जीनगी ये सपना ल अपने तुमन जानव घेरी-घेरी सपना म आके बबा गोठ करय पिआरा बबा के सपना मैं ह एक दिन ददा ले जाके कहेंव ददा के मुह ल ताकत-ताकत उत्तर जोहत रहेंव सन खाये पटुवा म अभरे चेहरा म बजगे बारा बड़ सोच-बिचार के ददा मुच-मुच बड़ हाँसिस मुड़ डोलावत-डोलवत बबा के सपना म फासिस पुरखा के सपना पूरा करव बेटा मोर दुलारा छै दिन के छठ्ठी ह जब होथे महिनो बाद पचास बसर के लइका होके देखंव येखर स्वाद छठ्ठी के काय रखे हे जब जागव भिनसारा

चल चिरईया नवा बसेरा

//चौपाई छंद// बेटी मुड मा मउर पहीरे । सोच धरे हे  घात गहीरे अपने अंतस सोचत जावय । मुँह ले बोली एक न आवय चल चिरईया नवा बसेरा । अपन करम ला धरे पसेरा पर ला अब अपने हे करना । मया प्रीत ला ओली भरना कइसे सपना देखव आँखी । मइके मा बंधे हे पाँखी रीत जगत के एके हावय । मइके छोड़े ससुरे भावय मोर भाग हा ओखर हाथ म । जीना मरना जेखर साथ म दाना-पानी संगे खाबो । अपन खोंधरा हम सिरजाबो सास-ससुर हा देवी-देवा । मंदिर जइसे करबो सेवा दूनों हाथ म बजही ताली । नो हय ये हा सपना खाली धुरी सृष्टि के जेला कहिथे । जेखर बर सब जीथे मरथे मृत्यु लोक के हम चिरईया । सुख-दुख के केवल सहईया

मैं भौरा होगेंव ओ.... (करमा गीत)

//करमा गीत// नायक- मैं भौरा होगेंव ओ....., मैं भौरा होगेंव न, तोर मया ह फूलवा, मन भौरा होगेंव न तोर मया ह फूलवा, मन भौरा होगेंव न । नायिका- मैं चिरइया होगेंव गा...., मैं चिरइया होगेंव न, तोर मया बदरवा, मैं चिरइया होगेंव न तोर मया बदरवा, मैं चिरइया होगेंव न। नायक- फूल पतिया कस, गाल लाली-लाली... ओठ जइसे मधुरस ले, भरे कोनो थारी नायिका- तोर बहिया पलना, झूलना कस लागे.. तोर मया के पुरवाही, तन-मन मा छागे नायक- मैं भौरा होगेंव ओ....., मैं भौरा होगेंव न, तोर मया ह फूलवा, मन भौरा होगेंव न तोर मया ह फूलवा, मन भौरा होगेंव न । नायिका- मैं चिरइया होगेंव गा...., मैं चिरइया होगेंव न, तोर मया बदरवा, मैं चिरइया होगेंव न तोर मया बदरवा, मैं चिरइया होगेंव न। नायक- फूल कस ममहावय, मुच-मुच हाँसी .... अरझ के रहि जाये, जीयरा करे फासी नायिका- तोर मया के रंग, बदरा कस लागे देखे बर तोला रे, मन म पाखी जागे नायक- मैं भौरा होगेंव ओ....., मैं भौरा होगेंव न, तोर मया ह फूलवा, मन भौरा होगेंव न तोर मया ह फूलवा, मन भौरा होगेंव न । नायिका- मैं चिरइया होगेंव गा...., मैं चिरइया होगे

जिया म जगाये अनुराग (करमा गीत)

//करमा  गीत// नयिका- जमुना कछार कदम डार, छेड़े मया के राग कान्हा मुरली बजा के, -2 तन-मन मोहनी डार, जिया म जगाये अनुराग नायक- बाजत गैरी बोलत पैरी, मेटे हे बैराग राधा हँस मुस्का के-2 नैना म नैना डार, जिया म जगाये अनुराग नायक- छलछल जमुना के पानी जइसे बानी आँखी तोरे छलकाये बोली तोर गुरतुर गुरतुर अमरित नैन मया उपजाये तैं मया के पराग, मोर बंषी के राग जोड़े अंतस के ताग, जिया म जगाये अनुराग नायिका- मया के हे मूरत, कान्हा तोरे सूरत देखते मदन मर जाये जस कमल के पाती, पानी रहय न थाती मोह बिन मया सिरजाये काम रखे न पाग, प्रीत के तही सुहाग जगा के मोरे भाग, जिया म जगाये अनुराग नयिका- जमुना कछार कदम डार, छेड़े मया के राग कान्हा मुरली बजा के -2 तन-मन मोहनी डार, जिया म जगाये अनुराग नायक- बाजत गैरी बोलत पैरी, मेटे हे बैराग राधा हँस मुस्का के-2 नैना म नैना डार, जिया म जगाये अनुराग

सहे अत्याचार (रूपमाला छंद)

शत्रु मारे देश के तैं, लांघ सीमा पार । हमर ताकत हवय कतका, जानगे संसार ।। नोटबंदी झेल जनता, खड़े रहिगे संग । देश बर हे मया कतका, शत्रु देखे दंग ।। हमर सैनिक हमर धरती, हमर ये पहिचान । मान अउ सम्मान इंखर, हमर तैं हा जान । झेल पथरा शत्रु के तै, सहे अत्याचार । हमर सैनिक मार खावय, बने तै लाचार ।। फैसला तैं खूब लेथस, मौन काबर आज । सहत हस अपमान काबर, हवय तोरे राज ।।

चना होरा कस, लइकापन लेसागे

चना होरा कस, लइकापन लेसागे पेट भीतर लइका के संचरे ओखर बर कोठा खोजत हे, पढ़ई-लिखई के चोचला धर स्कूल-हास्टल म बोजत हे देखा-देखी के चलन दाई-ददा बउरागे सुत उठ के बड़े बिहनिया स्कूल मोटर म बइठे बेरा बुड़ती घर पहुॅचे लइका भूख-पियास म अइठे अंग्रेजी चलन के दौरी म लइका मन मिंजागे बारो महिना चौबीस घंटा लइका के पाछू परे हे खाना-पीना खेल-कूद सब अंग्रेजी पुस्तक म भरे हे पीठ म लदका के परे बछवा ह बइला कहागे चिरई-चिरगुन, नदिया-नरवा अउ गाँव के मनखे लइका केवल फोटू म देखे सउहे देखे न तनके अपने गाँव के जनमे लइका सगा-पहुना कस लागे साहेब-सुहबा, डॉक्टर-मास्टर हो जाही मोर लइका जइसने बड़का नौकरी होही तइसने रौबदारी के फइका पुस्तक के किरा बिलबिलावत देष-राज म समागे बंद कमरा म बइठे-बइठे साहब योजना अपने गढ़थे घाम-पसीना जीयत भर न जाने पसीना के रंग भरथे भुईंया के चिखला जाने न जेन सहेब बन के आगे

मूरख हमला बनावत हें

बॉट-बॉट के फोकट म मूरख हमला बनावत हे पढ़े-लिखे नोनी-बाबू के, गाँव-गाँव म बाढ़ हे काम-बुता लइका मन खोजय येखर कहां जुगाड़ हे बेरोजगारी भत्ता बॉट-बॉट वाहवाही तो पावत हे गली-गली हर गाँव के बेजाकब्जा म छेकाय हे गली-गली के नाली हा लद्दी म बजबजाय हे छत्तीगढ़िया सबले बढ़िया गाना हमला सुनावत हे जात-पात म बाँट-बाँट के बनवात हे सामाजिक भवन गली-खोर उबड़-खाबड़ गाँव के पीरा काला कहन सपना देखा-देखा के वोट बैंक बनावत हे मास्टर पढ़ाई के छोड़ बाकी सबो बुता करत हे हमर लइका घात होषियार आघूच-आघूच बढ़त हे दिमाग देहे बर लइका मन ला थारी भर भात खवावत हे गाँव म डॉक्टर बिन मनखे बीमारी मा मरत हे कोरट के पेशी के जोहा म हमर केस सरत हे करमचारी के अतका कमी अपने स्टाफ बढ़ावत हे महिला कमाण्ड़ो घूम-घूम दरूवहा मन ला डरूवावय गाँव के बिगड़े शांति ल लाठी धर के मनावय जनता के पुलिस ला धर वो हा दारू बेचवावत हे

चारो कोती ले मरना हे

झोला छाप गांव के डॉक्टर, अउ रद्दा के भठ्ठी  । करना हावे बंद सबो ला, कोरट दे हे पट्टी ।। क्लिनिक सील होगे डॉक्टर के, लागे हावे तारा । सड़क तीर के भठ्ठी बाचे, न्याय तंत्र हे न्यारा ।। सरदी बुखार हमला हावय , डॉक्टर एक न गाँव म । लू गरमी के लगे थिरा ले, तैं भठ्ठी के छाँव म।। हमर गाँव के डॉक्टर लइका, शहर म जाके रहिथे । नान्हे-नान्हे लइका-बच्चा, दरूहा ददा ल सहिथे ।। गरीबहा भगवान भरोसा, सेठ मनन सरकारी । चारो कोती ले मरना हे, अइसन हे बीमारी ।।

अब आघू बढ़ही, छत्तीसगढ़ी

अब आघू बढ़ही, छत्तीसगढ़ी, अइसे तो लागत हे । बहुत करमचारी, अउ अधिकारी, येला तो बाखत हे ।। फेरे अपने मन, लाठी कस तन, खिचरी ला रांधत  हे । आके झासा मा, ये भाषा मा, आने ला सांधत हें ।।

मदिरा सवैया

रूप न रंग न नाम हवे कुछु, फेर बसे हर रंग म हे । रूप बने न कभू बिन ओखर, ओ सबके संग म हे ।। नाम अनेक भले कहिथे जग, ईश्वर फेर अनाम हवे । केवल मंदिर मस्जिद मा नहि, ओ हर तो हर धाम हवे ।।

छंदकार रमेश चौहान के दोहा

"अपन अभिव्यक्ति के सुघ्घर मंच"

छंदकार रमेश चौहान के नवगीत-‘‘मैं तो बेटी के बाप‘‘

छंदकार रमेश चौहान के कुण्डलियां-‘महतारी छत्तीसगढ़‘

जोगीरा सारा रारा

मउरे आमा ममहावय जब, नशा म झूमय साँझ । फाग गीत मा बाजा बाजे, ढोल नगाड़ा झाँझ ।। जोगीरा सारा रारा .. जोगीरा सारा रारा .. सपटे सपटे नोनी देखय, मचलत हावे बाबू । कइसे गाल गुलाल मलवं मैं, दिल हावे बेकाबू । जोगीरा सारा रारा .. जोगीरा सारा रारा .. दाई ल बबा हा कहत हवय, डारत-डारत रंग । जिनगी मोर पहावत जावय, तोर मया के संग ।। जोगीरा सारा रारा .. जोगीरा सारा रारा .. भइया-भौजी खेलत होरी, डारत रंग गुलाल । नंनद देखत सोचत हावय, कब होही जयमाल ।। जोगीरा सारा रारा .. जोगीरा सारा रारा .. होली हे होली हे होली, धरव मया के रंग । प्रेम जवानी सब मा छाये, सबके एके ढंग ।। जोगीरा सारा रारा .. जोगीरा सारा रारा ..

चल न घर ग

भृंग छंद नगण (111) 6 बार अंत म पताका (21) चल न घर ग, बिफर मत न, चढ़त हवय दारू । कहत कहत, थकत हवय, लगत हवय भारू ।। लहुट-पहुट, जतर-कतर, करत हवस आज । सुनत-सुनत, बकर-बकर, लगत हवय लाज ।।

भठ्ठी ल करव बंद

दारू म छठ्ठी छकत हवय गा, दारू म होय बिहाव । दारू म मरनी-हरनी होवय, मनखे करे हियाव ।। दरूहा-दरूहा के रेम लगे, सजे रहय दरबार । दारू चुनावी दंगल गढ़थे, अउ गढ़थे सरकार ।। गली-गली मा शोर परत हे, भठ्ठी ल करव बंद । पीयब छोड़ब कहय न कोनो, कहय रमेशानंद ।।

लोकतंत्र मा छूट हवे

आजादी हे बोलब के, तभे फूटत बोल । सहिष्णुता के ढाल धऱे, बजावत हस ढोल ।। देश तोरे राज तोरे, अपन अक्कल खोल । बैरी कोन काखर हवे, तहुँ थोकिन टटोल ।। जतका कर सकस कर बने, सत्ता के विरोध । लोकतंत्र मा छूट हवे, कोनो डहर ओध ।। दाई असन हवय धरती, देश ला मत बाँट । आनी-बानी बक बक के, माथा ल झन चाट ।।

-ददरिया-

हाथ धरे पर्स, पर्स म मोबाइल चुपे चाप बोल ले, कर के स्माइल मोर करेजा मोर करेजा  उबुक-चुबुक तोला जोहे तोला जोहे करेजा करे बर संगी संगी मोर होइ जाबे ना टाठ-टाठ जिंस पेंट, टाठे हे कुरता तोर झूल-झूल रेंगना के आवत हे सुरता मोर करेजा मोर करेजा  उबुक-चुबुक तोला जोहे तोला जोहे करेजा करे बर संगी संगी मोर होइ जाबे ना चढ़े स्कूटी, तै गली घूमे नजर भेर देख, अपन हाथे चूमे मोर करेजा मोर करेजा  उबुक-चुबुक तोला जोहे तोला जोहे करेजा करे बर संगी संगी मोर होइ जाबे ना कोहनी ले मेंहदी, अंगठा म छल्ला गजब के सोहत हे, सब करे हल्ला मोर करेजा मोर करेजा  उबुक-चुबुक तोला जोहे तोला जोहे करेजा करे बर संगी संगी मोर होइ जाबे ना एके गोड़ म पहिरे, रेशम के डोरी सुटुर-सुटुर रेंगे, करके दिल ल चोरी मोर करेजा मोर करेजा  उबुक-चुबुक तोला जोहे तोला जोहे करेजा करे बर संगी संगी मोर होइ जाबे ना

कहमुकरिया

1. अपन बाँह मा भरथंव जेला । जेन खुशी बड़ देथे मोला ।। मन हरियर तन लाली भूरी । का सखि ? भाटो ! नहि रे चूरी ।। 2. बिन ओखर जेवन नई चुरय । सांय-सांय घर कुरिया घुरय ।। जेन कहाथे घर के दूल्हा । का सखि ? भाटो ! नहि रे, चूल्हा ।। 3. दुनिया दारी जेन बताथे । रिगबिग ले आँखी देखाथे । जेखर आघू बइठवं ‘सीवी‘ का सखि ? भाटो ! नहि रे, टीवी ।।

मैं तो बेटी के बाप

//नवगीत// दुख के हाथी मुड़ मा बइठे कइसे बिताववं रात टुकुर-टुकुर बादर ला देखत ढलगे हवं चुपचाप न रोग-राई हे न प्रेम रोग हे मैं तो बेटी के बाप कोन सुनही काला सुनावंव अपन मन के बात जतका मोरे चद्दर रहिस हे ततका पांव मारेंव चिरई कस चुन-चुन दाना ओखर मुह मा डारेंव बेटी-बेटा एक मान के पढाय लिखाय हंव घात कइसे कहंव अपन पीरा ल मिलय न लइका अइसे पढ़े-लिखे गुणवान होय मोरे नोनी हे जइसे पढ़ई-लिखई छोड़-छोड़ के टुरा दारू म गे मात जांवर-जीयर बिन बिरथा हे नोनी के बुता काम दूनो चक्का एक होय म चलथे गाड़ी तमाम आंगा-भारू कइसे फांदवं लाके कोनो बरात टूरा अउ टूरा के ददा थोकिन गुनव सोचव पढ़ई लिखई पूरा करके काम बुता सरीखव नोनी बाबू एक बरोबर बाढ़त रहल दिन रात -रमेश चौहान

बनय जोड़ी हा कइसे

कइसे मैं हर करव, बेटी के ग बिहाव । बेटी जइसे छोकरा, खोजे ल कहां जांव । खोजे ल कहां जांव, कहूं ना बने दिखे गा । दिखय न हमर समाज, छोकरा पढ़े लिखे गा । नोनी बी. ई. पास, मिलय ना टूरा अइसे । टूरा बारा पास, बनय जोड़ी हा कइसे ।।

संगवारी

सुख दुख के तही संगवारी । तोर मया बर मै बलिहारी ।। मोर संग तै देवत रहिबे । मोर भूल चूक सहत रहिबे । पाठ मितानी के धरे रहब । काम एक दूसर करत रहब ।। तोर सबो पीरा मोरे हे । मोर सबो पीरा तोरे हे ।। बिन तोरे ये जीनगी दुभर । बिन संगी हम जीबो काबर ।। तोर मया जीनगी ल गढ़थे । मोला देखत तोला पढ़थे ।। -रमेश चौहान

मनखे के धरम

मनमोहन छंद मनखे के हे, एक धरम । मनखे बर सब, करय करम मनखे के पहिचान बनय । मनखेपन बर, सबो तनय दूसर के दुख दरद हरय । ओखर मुड़ मा, सुख ल भरय सुख के रद्दा, अपन गढ़य । भव सागर ला पार करय मनखे तन हे, बड़ दुरलभ । मनखे मनखे गोठ धरब करम सार हे, नषवर जग । मनखे, मनखे ला झन ठग जेन ह जइसन, करम करय । तइसन ओखर, भाग भरय सुख के बीजा म सुख फरय । दुख के बीजा ह दुख भरय मनखे तन ला राम धरय । मनखे मन बर, चरित करय सब रिश्ता के काम करय । दूसर के सब, पीर हरय -रमेश चौहान

मया

कुची हथौड़ा के किस्सा । मनखे मन के हे हिस्सा हथौड़ा ह ताकत जोरय । कुचर-कुचर तारा टोरय  । अतकी जड़ कुची ह रहिथे । मया म तारा ले कहिथे मया मोर अंतस धर ले  ।  अपने कोरा मा भर ले जब तारा-चाबी मिलथे । मया म तारा हा खुलथे एक ह जोड़े ला जानय । दूसर टोरे मा मानय लहर-लहर झाड़ी डोले ।  जब आंधी हा मुँह खोले रूखवा ठाड़े गिर परथे । अकड़न-जकड़न हा मरथे

राम कथा के सार

राम  कथा मनखे सुनय, धरय नहीं कुछु कान । करम राम कस करय नहि, मारत रहिथे शान ।। राम भरत के सुन कथा, कोने करय बिचार । भाई भाई होत हे, धन दौलत बेकार ।। दान करे हे राम हा, जीते लंका राज । बेजा कब्जा के इहाँ, काबर हे सम्राज ।। गौ माता के उद्धार बर,  जनम धरे हे राम । चरिया परिया छेक के,  मनखे करथे नाम ।। करम जगत मा सार हे, रामायण के काम । करम करत रावण बनव, चाहे बन जौ राम । नैतिक शिक्षा बिन पढे, सब शिक्षा बेकार । थोर बहुत तो मान ले, मनखे बन संसार ।। -रमेश चौहान

चोरी होगे खोर गली हा

बबा पहर मा खोर गली हा, लागय कोला बारी । ददा पहर मा बइला गाड़ी, आवय हमर दुवारी,  । नवा जमाना के काम नवा, नवा नवा घर कुरिया । नवा-नवा फेषन के आये, जुन्ना होगे फरिया ।। सब पैठा रेंगान टूटगे, टूटगे हे ओरवाती । तभो गली के काबर अब तो, छोटे लागय छाती ।। घर ओही हे पारा ओही, खोर गली ओही हे । गुदा-गुदा दिखय नही अब तो, बाचे बस गोही हे । मोर पहर के बात अलग हे, फटफटी न आवय । चोरी होगे खोर गली हा, पता न कोनो पावय ।।

बिता भर के टुरा कहय तोर बाप के का जात हे

बिता भर के टुरा कहय तोर बाप के का जात हे कउवां कुकुर कस डोकरा भुकय देख अपन गांव के लइका ला अपन हद म रहे रहव बाबू झन टोरव लाज के फइका ला ही-ही भकभक जादा झन करव तोरे दाई-माई जात हे गली मोहाटी बाटल-साटल खोले काबर बइठे दारू मंद के आगी म जरे मरे सांप कस अइठे सरहा कोतरी के मास तोला कइसन भात हे गली-गली म डिलवा ब्रेकर तोर सेखी न रोक सकय तोरे दीदी भाई-भोजी तोला कोसत अपने थकय घूम-घूम क मेछरावत गोल्लर नागर म कहां कमात हे ।

मया ल ओ अनवासय

मुचुर-मुचुर जब हासय ओ मोटीयारी मया ल तो अनवासय बिहनिया असन छाये चुक लाली-लाली सबके मन ला भाये चिरई कस ओ चहकय खोल अपन पांखी मन बादर मा गमकय फूल डोहड़ी फूले झुमर-झुमर डारा चारो-कोती झूले अंतस मा मया धरे आँखी गढियाये बिन बोले गोठ करे

मोर दूसर ब्लॉग