तर्क ज्ञान विज्ञान कसौटी, पढ़ई-लिखई के जर आवय । काबर कइसे प्रश्न खड़ा हो, जिज्ञासा ला हमर बढ़ावय ।। रटे-रूटाये तोता जइसे, अक्कल ला ठेंगा देखावय । डिग्री-डिग्री के पोथा धर के, ज्ञानी-मानी खुदे कहावय ।। जिहां तर्क के जरूरत होथे, फांदे ना अक्कल के नांगर । आस्था ला टोरे-भांजे बर, अपन चलावत रहिथे जांगर ।। ज्ञान परे आखर पोथी ले, कतको अनपढ़ ज्ञानी हावय । सृष्टि नियम विज्ञान खोजथे, ललक-सनक ला जेने भावय ।। सुख बीजा विज्ञान खोचथे, भौतिक सुविधा ला सिरजावय । खुद करके देखय अउ जानय, वोही हा विज्ञान कहावय ।। सृष्टि रीत जे जानय मानय, मानवता जे हर अपनावय । अंतस सुख के जे बीजा बोवय, वो ज्ञानी आदमी कहावय ।। एक ध्येय ज्ञानी विज्ञानी के, मनखे जीवन डगर बहारय । एक लक्ष्य अध्यात्म धर्म के, मनखे मन के सोच सवारय ।। अपन सुवारथ लाग-लपेटा, फेर कहां ले मनखे पावय । अपने घर परिवार बिसारे, अपने भर ला कइसे भावय ।।
पुस्तक समीक्षा:शोधार्थियों के लिए बहुपयोगी प्रबंध काव्य “राजिम सार”-अजय
‘अमृतांशु’
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मनीराम साहू मितान द्वारा सृजित “राजिम सार” छत्तीसगढ़ी छन्द प्रबंध काव्य
पढ़ने को मिला। छत्तीसगढ़ी में समय-समय पर प्रबंध काव्य लिखे जाते रहे है।
पंडित सुंदर...
4 दिन पहले