लहर लहर सादा झण्ड़ा हा, जैत खाम मा लहराय ।
हवे सत्य शाश्वत दुनिया मा, दे संदेशा जग बगराय ।।
महानदी के पावन तट मा, गिरौदपुरी घाते सुहाय ।
जिहां बसे महंगु अमरौतिन, सुख मा जीवन अपन बिताय ।
सतरा सौ छप्पन के बेरा, अठ्ठारा दिसम्बरे भाय।
निरधन महंगु के कुरिया मा, सत हा मनखे तन धर आय ।
चारो कोती मंगल होवय, लोगन मांदर ढोल बजाय ।
चिरई चिरगुन सब जंगल के, फूदक फूदक खुशी मनाय ।।
लइका के मुॅह देख देख के, अपने सुध-बुध सब बिसरत जाय
जेने देखय तेने जानय, मुॅह मा कुछु बोली ना आय ।
अमरौतिन दाई के कोरा, बालक मंद मंद मुस्काय ।
ऐही लइका आघू चल के, गुरूजी घासी दास कहाय ।।
सोनाखान तीर जंगल मा, घासी हा सत खोजय जाय ।
खोजत खोजत फेर एक दिन, छाता परवत ऊपर आय।।
जिहां बबा बइठे जब आसन, घाते के समाधी लगाय ।
सत के संग मिले सत हा जब, सत सत सब एके हो जाय ।।
सत के जयकारा फेर गुंजे, दुनिया मा सतनाम कहाय ।
मनखे मनखे सब एक कहे, सात बचन गुरू देत बताय ।
सत्य धरव सब अंतस भीतर, मारव मत कोनो जीव ।
मांस मटन खावव मत कोनो, जीव जीव हा होथे सीव ।।
चोरी हारी ले दूर रहव, छोड़ जुआ चित्ती के खेल ।
नशा नाश के तो जड़ होथे, करहूं मत ऐखर ले मेल ।।
जाति-पाति सब धोखा होथे, मनखे मनखे एके जान ।
व्यभिचार करहूं मत कोनो, पर नारी हे जहर समान ।।
जेन धरे गुरू के सात बचन, भव बंधन ला देत हराय ।
ये दुनिया के सुख भोग सबो, परम लोक मा जात समाय ।।
हवे सत्य शाश्वत दुनिया मा, दे संदेशा जग बगराय ।।
महानदी के पावन तट मा, गिरौदपुरी घाते सुहाय ।
जिहां बसे महंगु अमरौतिन, सुख मा जीवन अपन बिताय ।
सतरा सौ छप्पन के बेरा, अठ्ठारा दिसम्बरे भाय।
निरधन महंगु के कुरिया मा, सत हा मनखे तन धर आय ।
चारो कोती मंगल होवय, लोगन मांदर ढोल बजाय ।
चिरई चिरगुन सब जंगल के, फूदक फूदक खुशी मनाय ।।
लइका के मुॅह देख देख के, अपने सुध-बुध सब बिसरत जाय
जेने देखय तेने जानय, मुॅह मा कुछु बोली ना आय ।
अमरौतिन दाई के कोरा, बालक मंद मंद मुस्काय ।
ऐही लइका आघू चल के, गुरूजी घासी दास कहाय ।।
सोनाखान तीर जंगल मा, घासी हा सत खोजय जाय ।
खोजत खोजत फेर एक दिन, छाता परवत ऊपर आय।।
जिहां बबा बइठे जब आसन, घाते के समाधी लगाय ।
सत के संग मिले सत हा जब, सत सत सब एके हो जाय ।।
सत के जयकारा फेर गुंजे, दुनिया मा सतनाम कहाय ।
मनखे मनखे सब एक कहे, सात बचन गुरू देत बताय ।
सत्य धरव सब अंतस भीतर, मारव मत कोनो जीव ।
मांस मटन खावव मत कोनो, जीव जीव हा होथे सीव ।।
चोरी हारी ले दूर रहव, छोड़ जुआ चित्ती के खेल ।
नशा नाश के तो जड़ होथे, करहूं मत ऐखर ले मेल ।।
जाति-पाति सब धोखा होथे, मनखे मनखे एके जान ।
व्यभिचार करहूं मत कोनो, पर नारी हे जहर समान ।।
जेन धरे गुरू के सात बचन, भव बंधन ला देत हराय ।
ये दुनिया के सुख भोग सबो, परम लोक मा जात समाय ।।
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