अपने सही समझे कभू, मनखे बने मनखे सही ।
अपने च मा कतका रमे, सबला भुलाय रखे तही ।।
चिरई घलो करथे बने, अपने च खातिर काम गा ।
करले कुछु मनखे सही, मनखे हमी मन आन गा ।।
छत्तीसगढ़ी भाषा अउ छत्तीसगढ़ के धरोहर ल समर्पित रमेशकुमार सिंह चौहान के छत्तीसगढ़ी छंद कविता के कोठी ( rkdevendra.blogspot.com) छत्तीसगढ़ी म छंद विधा ल प्रोत्साहित करे बर बनाए गए हे । इहॉं आप मात्रिक छंद दोहा, चौपाई आदि और वार्णिक छंद के संगेसंग गजल, तुकांत अउ अतुकांत कविता पढ़ सकत हंव ।
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