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कतका झन देखे हें-

नवा साल

नवा साल के करव सब, परघौनी दिल खोल । नाचव कूदव बने तुम, बजा नगाड़ा ढोल ।। बजा नगाड़ा ढोल, खुशी के अइसन बेरा । पाछू झन तै देख, हवय आगू मा डेरा ।। ‘रमेश‘ गा ले गीत, खुशी के गढ़ ताल नवा । होही बड़ फुरमान, सबो ला ये साल नवा ।।

मोर सुवारी

मोर सुवारी के मया, घर परिवार बनाय । संगी पीरा के बनय, अर्धांगनी कहाय ।। अर्धांगनी कहाय, काम मा हाथ बटा के । घर के बूता संग, खेत मा घला कमा के ।। सास ससुर के मान, करय बन ओखर प्यारी । ‘रमेश‘ करथे मान, हवय धन धन मोर सुवारी ।।

पुसवा के जाड़

बिहनिया बिहनिया, सुत उठ के देख ले,  अपन तै चारो कोती, नवा नवा घाम मा । हरियर हरियर, धरती के लुगरा मा,  सीत जरी कस लागे, पुसवा ये धाम मा ।। निकाल मुॅंह ले धुॅवा, चोंगी के नकल करे,  चिढ़ावत हे बबा ला,  माखुर के नाम मा । भुरी तापत बइठे, चाय चुहकत बबा,  उठ उठ चिल्लावय,  चलव रेे काम मा  ।

बात मत कर जहर सने

बने चलत ये काम हा, तोला नई सुहाय । होके ओखर आदमी, काबर टांग अड़ाय ।। काबर टांग अड़ाय, बेसुरा राग तै छेड़े । गुजरे दिन के बात, फेर काबर तै हेरे ।। करना बहुते काम, बात मत कर जहर सने । हिन्दू मुस्लिम साथ, काल रहिहीं बने बने ।।

ताॅंका

ताॅंका 1.   घेरत हवे सुरूर सुरूर रे ऊपर नीचे बरसत हवे ना सीत अउ कुहरा । 2.   कमरा ओढ़े गोड़ हाथ लमाय गोरसी तीर मुह कान सेकय चाय पियत बबा । 3.   मुड़ गोड़ ले ओढ़े कथरी सुते मजा पावत काम बुता ला छोड़ बाढ़े बाढ़े छोकरा । -रमेश चौहान

जाड़ (बिना तुक के कविता)

सुत उठ के बिहनिया ले, बारी बखरी ला जब देखेंव, मुहझुंझूल कुहासा रहय चारो कोती परदा असन डारा-डारा, पाना-पाना मा चमकत रहय दग दग ले झक सफेद मोती कस ओस के बूंद करा बानी । हाथ गोठ कॅंपत रहय पहिली ले अपने अपन जेला तोपे रहंव सेटर के चोंगा मा साल ला ढाके रहंव मुडभर फेर कइसे के दांत बाजय हू हू मुह बोलय हाथ जोरे रगरत रहिगेंव । पानी मा लगे हे आगी कुहरे कुहरा भर दिखत हे तीर मा खड़े होय मा हाडा टघलय कोन बुतावय । उत्ती ले लाल लाल गोड़ के पुक असन आवत दिखीस एक ठन गोला कुनकुन कुनकुन बेरा के चढत छर छर ले बगरिस घाम जी जुड़ाइस ।   -रमेश चौहान

बाढ़े बहुते जाड़

कथरी कमरा ओढ ले, सेखी मत तो झाड़ । हाथ गोड़ कापत हवे, बाढ़े बहुते जाड़ ।। बाढ़े बहुते जाड़, पूस के सीत लहर मा । हू हू मनखे करय, रगड़ के हाथ कहर मा ।। नोनी बिना नहाय, दिखत हे कइसन झिथरी । बइठे आगी तीर, बबा ओढ़े हे कथरी ।

घासी दास के अमर संदेस

घासीदास जयंती के गाड़ा -गाड़ा बधाई .............................................. सतगुरू घासी दास के, हवय अमर संदेस । सत्य अहिंसा धैर्य ले, मेटव मन के क्लेस ।। मनखे मनखे एक हे, ईश्वर के सब पूत । ऊॅंच नीच मत मान तै, मत मान छुवा छूत ।। काम लगन ले सब करव, तन मन ले औजार । जीवन मा रख सादगी, करूणामय व्यवहार ।। -रमेश चौहान

आदमी मन डहत हवे

डहत हवे गा कंस कस, आतंकी करतूत । खुदा बने खुद आदमी, खुदा खड़े बन बूत ।। खुदा खड़े बन बूत, अंधरा अउ भैरा होके । आतंकी करतूत, भला अब कोन ह रोके ।। मनखे हो असहाय, जुलुम ला तो सहत हवे । मानवता ला छोड़, आदमी मन डहत हवे ।

होथे कइसे संत हा (कुण्डलिया)

काला कहि अब संत रे, आसा गे सब  टूट । ढोंगी ढ़ोंगी साधु हे, धरम करम के लूट ।। धरम करम के लूट, लूट गे राम कबीरा । ढ़ोंगी मन के खेल, देख होवत हे पीरा ।। जानी कइसे संत, लगे अक्कल मा ताला । चाल ढाल हे एक, संत कहि अब हम काला ।। होथे कइसे संत हा, हमला कोन बताय । रूखवा डारा नाच के, संत ला जिबराय ।। संत ला जिबराय, फूल फर डारा लहसे । दीया के अंजोर, भेद खोलय गा बिहसे ।। कह ‘रमेष‘ समझाय, जेन सुख शांति ल बोथे । पर बर जिथे ग जेन, संत ओही हा होथे । -रमेश चौहान 099770695454

पढ़ई लिखई

पढ़ई लिखई सीख के, अपन बदल ले सोच । ज्ञान बाह भर समेट के, माथा कलगी खोच ।। माथा कलगी खोच, दया उपकार अहिंसा । तोर मोर ला छोड़, मया कर ले हरहिंछा ।। मया आय गा नेह, चलव ऐमा घर बनई । ऊंच नीच के भेद, मेटथे पढ़ई लिखई ।।

बिलवा (कुण्डलियां)

1. बिलवा तोरेे ये मया, होगे जी जंजाल । पढ़ई लिखई छूट गे, होगे बारा हाल ।। होगे बारा हाल, परीक्षा म फेल होके । जेल बने घर द्वार, ददा हा रद्दा रोके ।। पहरा चारो पहर, अंगना लागे डिलवा । कइसे होही मेल, संग तोरे रे बिलवा ।। 2. मना दुनो दाई ददा, करबो हमन बिहाव देखाबो दिल खोल के, अपन मया अउ भाव । अपन मया अउ भाव, कहव हम कइसे रहिबो । कहव मया ला देख, कहे तुहरे हम करबो।। सुन के हमरे बात, ददा दाई कहे ह ना। करबो तुहार बिहाव, करय कोनो न अब मना ।। -रमेश चौहान

आज देवउठनी हवय

छोटे देवारी देवउठनी एकादशी के अब्बड़ अब्बड़ बधाई आज देवउठनी हवय, चुहकबो कुसीयार । रतिहा छितका तापबो, जुर मिल के परिवार ।। लक्ष्मी ह कुसीयार बन, जोहे हे भगवान । कातिक महिना जाड़ के, छितका ले सम्मान ।। बिंदा तुलसी हे बने, बिष्णु ह सालिक राम । तुलसी बिहाव गांव मा, देखत छोड़े काम ।। उपास हे मनखे बहुत, ले श्रद्धा विश्वास । अंध विश्वास झन कहव, डाइटिंग ल उपास ।। हमर लोक संस्कृति हवय, हमरे गा पहिचान । ईश्वर ला हर बात मा, हम तो देथन मान ।।

काम हे तोर लफंगी

अपने तै परभाव, परख ले गा दुनिया मा । कहां कदर हे तोर, हवय का घर कुरिया मा ।। फुलथे जब जब फूल, खुदे ममहाथे संगी । फूल डोहड़ी मान, काम हे तोर लफंगी ।।

ओ दरूहा मनखे

डुगुर-डुगुर डोले, बकर-बकर बोले, गांव के अली-गली मा, ओ दरूहा मनखे । कोनो ल झेपय नही, कोनो न घेपय नही, एखर-ओखर मेर, दत जाथे तन के ।। अपने ओरसावत, अपने च सकेलत, झुमर-झुमर झूम, आनी-बानी गोठ ला । ओ कोनो ला ना सुनय, ना ओ कोनो ला देखय, देखावत हे अपने, हाथ करे चोट ला ।।

काबर करे अराम

आधा करके काम ला, काबर करे अराम । आज काल के फेर मा, कतका बाचे काम ।। कतका बाचे काम, देख के चिंता होही । करहि जेन हा ढेर, बाद मा  बहुते रोही ।। मन के जीते जीत, हार मन के हे व्याधा। चिंता मा तन तोर, होय सूखा के आधा।।

शुभ दीपावली

घर घर दीया बार, आज हे गा सुरहोत्ती । तुलसी चैरा पार, तोर घर कुरिया कोठी । घुरवा परिया खार, खेत बारी हे जेती । रिगबिग रिगबिग देख, हवय गा चारो कोती ।।

कब आबे होश मा

एती तेती चारो कोती, इहरू बिछरू बन, देश के बैरी दुश्मन, घुसरे हे देष मा । चोट्टा बैरी लुका चोरी, हमरे बन हमी ला, गोली-गोला मारत हे, आनी बानी बेष मा ।। देष के माटी रो-रो के, तोला गोहरावत हे, कइसन सुते हस, कब आबे होश मा । मुड़ म पागा बांध के, हाथ धर तेंदु लाठी, जमा तो  कनपट्टी ला, तै अपन जोश मा ।।

दो कवित्त्त

     दो कवित्त्त                                   1- फेशन के चक्कर मा, दूसर के टक्कर मा, लाज ला भुलावत हे, टूरा टूरी गांव के । हाथ धरे मोबाईल, फोकट करे स्माईल, करत आंख मटक्का, धरे मया नाव के ।। करे मया देखा देखी, संगी संगी ऐती तेती, भागत उड़रहीया,  यै लईका आज के । ददा ला गुड़ेरत हे, दाई ला भसेड़ेत हे, टोरत हे आजकल, फईका लाज के  ।                     2-. ऐती तेती चारो कोती, इहरू बिछरू बन, देश के बैरी दुश्मन, घुसरे हे देश मा । चोट्टा बैरी लुका चोरी, हमरे बन हमी ला, गोली-गोला मारत हे, आनी बानी बेश मा ।। देष के माटी रो-रो के, तोला गोहरावत हे, कइसन सुते हस, कब आबे होश मा । मुड़ म पागा बांध के, हाथ धर तेंदु लाठी, जमा तो  कनपट्टी ला, तै अपन जोश मा ।।

हमर किसान गा (मनहरण घनाक्षरी)

मुड़ मा पागा लपेटे, हाथ कुदरा समेटे, खेत मेड़ मचलत हे, हमर किसान गा । फोरत हे मुही ला, साधत खेत धनहा, मन उमंग हिलोर, खेत देख धान गा । लहर-लहर कर, डहर-डहर भर, झुमर-झुमर कर, बढ़ावत शान गा । आनी-बानी के सपना, आंखी-आंखी संजोवत, मन मा नाचत गात, हमर किसान गा ।

जसगीत

गढ़ बिराजे हो मइया, छत्तीसगढ़ मा बिराजे हो माय गढ़ बिराजे हो मइया, छत्तीसगढ़ मा बिराजे हो माय रायपुर रतनपुर नवागढ़, महामाई बन बिराजे बम्लेश्वरी डोंगरगढ, पहडि़या ऊपर राजे बेमेतरा दुरूग मा, भद्रकाली चण्डी बाना साजे नाथल दाई नदिया भीतर, चंद्रहासनी संग बिराजे हो माय । तिफरा मा कालीमाई, डिंडेश्वरी मल्हारे बस्तर के दंतेवाड़ा, दंतेश्वरी संवारे सिंगारपुर मौलीमाता, भगतन के रखवारे खल्लारी मा खल्लारी माता, अंबिकापुर मा समलेश्वरी बिराजे हो माय गांव गांव पारा पारा, तोर मंदिर देवालय भाथे भगतन जाके तोर दुवरिया, अपन माथ नवाथे आनी बानी मन के मनौती, रो रो तोला गोहराथे सबके पीरा के ते हेरईया, सबके मन बिराजे हो माय । गढ़ बिराजे हो मइया, छत्तीसगढ़ मा बिराजे हो माय गढ़ बिराजे हो मइया, छत्तीसगढ़ मा बिराजे हो माय -रमेशकुमार सिंह चौहान

गोठ मोरे तै गुनबे

नवा नवा तो जोश, देख हे लइका मन के । भरना मुठ्ठी विश्व, ठान ले हे बन ठन के ।। धर के अंतरजाल, करे हें माथा पच्ची । एक काम दिन रात, करे सब बच्चा बच्ची ।। मोबाईल कम्प्यूटर युग, परे रात दिन फेर मा । पल मा बादर ला अमरथे, सुते सुते ओ ढेर मा ।। होय नफा नुकसान, काम तै कोनो कर ले । करे यंत्र ला दास, फायदा झोली भर ले ।। बने कहूं तै दास, अपन माथा ला धुनबे । आज नही ता काल, गोठ मोरे तै गुनबे ।। अकलमंद खुद ला मान के, करथस तै तो काम रे । अड़हा नइये दाई ददा, खरा सोन हे जान रे ।। -रमेशकुमार सिंह चौहान

संझा (अनुदित रचना)

मूल रचना - ‘‘संध्या सुंदरी‘‘ मूल रचनाकार-श्री सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला‘ -------------------------------------------- बेरा ऐती न ओती बेरा बुडत रहिस, करिया रंग बादर ले सुघ्घर उतरत रहिस, संझा वो संझा, सुघ्घर परी असन, धीरे धीरे धीरे............... बुड़ती म, चुलबुलाहट के अता पता नइये ओखर दूनो होट ले टपकत हे मधुरस, फेर कतका हे गंभीर .... न हसी न ठिठोली, हंसत  हे त एके ठन तारा, करिया करिया चुंदी मा, गुथाय फूल गजरा असन मनमोहनी के रूप संवारत चुप्पी के नार वो तो नाजुक कली चुपचाप सिधवा के गर मा बहिया डारे बादर रस्ता ले आवत छांव असन नई बाजत हे हाथ मा कोनो चूरी न कोई मया के राग न अलाप मुक्का हे साटी के घुंघरू घला एक्के भाखा हे ओहू बोले नई जा सकय चुप चुप एकदम चुप ए ही हा गुंजत हे बदर मा, धरती मा सोवत तरिया मा, मुंदावत कमल फूल मा रूप के घमंडी नदिया के फइले छाती मा धीर गंभीर पहाड़ मा, हिमालय के कोरा मा इतरावत मेछरावत समुंद्दर के लहरा मा धरती आकास मा, हवा पानी आगी मा एक्के भाखा हे ओहू बोले नई जा सकय चुप चुप एकदम चुप एही हा गुंजत हे अउ का हे, कुछु नइये नशा धरे आवत

पढ़ई पढ़ई

पढ़ई पढ़ई अइसन पढ़ई ले आखिर का होही । गुदा के अता पता नइये बाचे हवव बस गोही ।। कौड़ी के न काम के जांगर चोर भर तो होही । रात भर जागे हे बाबू, दिन भर अब तो सोही ।। न ओला पुरखा के मान हे न देश धरम के ज्ञान । अंग्रेजियत देखा देखा हमन ला तो अब बिट्टोही ।। विदेसी सिक्षा जगावय विदेसी संस्कृति के अभिमान । अपन धरम ला मानय नही बाबू बनगे अब कुल द्रोही ।। रीति रिवाज संस्कृती ला देवत हे अंधविश्वास के नाम । बिना विश्वास के देश परिवार समाज कइसे के होही ।। लईका पढ़थ हे कहिके, कोनो नई करावय कुछु काम । रूढ़ाय जांगर ले आखीर काम कइसे करके होही ।। लईका पढ़त लिखत हे घाते फेर कढ़त नइये । कढ़े बिना सूजी मा धागा कइसे करके पिरोही ।। पागे कहु नौकरी चाकरी त होगे परदेशिया । बुढ़ाय दाई ददा के डोंगा ला अब कोन खोही ।। नई पाइस कहूं कुछु काम ता घर के ना घाट के माथा धर के बाबू अब तो काहेक के  रोही ।। सिरतुन कहंव चाहे कोनो गारी देवव के गल्ला । गांव-गली नेता अऊ ऊखर चम्मच के अब भरमार होही । इंकरे आये ले होवत हे भ्रष्टाचार के अतका हल्ला । ईखर मन के करम ले अब देश शरमसार तो होही ।।

जानव अपन छंद ला

पाठ-1 छंद के पहिचान श्री गणपति गणराज के, पहिली पाँव पखार । लिखंव छंद के रंग ला, पिंगल भानु विचार ।। होहू सहाय शारदे, रहिहव मोरे संग । कविता के सब गुण-धरम, भरत छंद के रंग ।। गुरू पिंगल अउ भानु के, सुमरी-सुमरी नाम । नियम-धियम रमेश‘ लिखय, छंद गढ़े के काम ।। छंद वेद के पाँव मा, माथा रखय ‘रमेश‘ । छंद ज्ञान के धार ला, जग मा भरय गणेश ।। छंद- आखर गति यति के नियम, आखिर एके बंद । जे कविता मा होय हे, ओही होथे छंद ।। अनुसासन के पाठ ले, बनथे कोनो छंद । देख ताक के शब्द रख, बन जाही मकरंद ।। कविता के हर रंग मा, नियम-धियम हे एक । गति यति लय अउ वर्ण ला, ध्यान लगा के देख ।। छंद के अंग- गति यति मात्रा वर्ण तुक, अउ गाये के ढंग । गण पद अउ होथे चरण, सबो छंद के अंग ।। गति- छंद पाठ के रीत मा, होथे ग चढ़ उतार । छंद पाठ के ढंग हा, गति के करे सचार ।। यति- छंद पाठ करते बखत, रूकथन जब हम थोर । बीच-बीच मा आय यति, गति ला देथे टोर ।। आखर - आखर के दू भेद हे, स्वर व्यंजन हे नाम । ‘अ‘ ले ‘अः‘ तक तो स्वर हे, बाकी व्यंजन जान । बाकी व्यंजन जान, दीर्घ लघु जेमा होथे ।

वाह रे तै तो मनखे

जस भेडि़या धसान, धसे मनखे काबर हे । छेके परिया गांव, जीव ले तो जांगर हे ।। नदिया नरवा छेक, करे तै अपने वासा । बचे नही गऊठान, वाह रे तोर तमाशा । रद्दा गाड़ी रवन, कोलकी होत जात हे । अइसन तोरे काम, कोन ला आज भात हे ।। रोके तोला जेन, ओखरे बर तै दतगे । मनखे मनखे कहय, वाह रे तै तो मनखे ।। दे दूसर ला दोष, दोष अपने दिखय नही । दिखय कहूं ता देख, तहूं हस ग दूसर सही ।। धरम करम के मान, लगे अब पथरा जइसे । पथरा के भगवान, देख मनखे हे कइसे ।

बेटी (रोला छंद)

बेटी मयारू होय, ददा के सब झन कहिथे । दुनिया के सब दर्द, तोर पागा बर सहिथे ।। ससुरे मइके लाज, हाथ मा जेखर होथे । ओही बेटी आज, मुड़ी धर काबर रोथे।।

कृष्ण जन्माष्टमी

आठे कन्हया के लमे बाह भर बधाई भादो के महीना, घटा छाये अंधियारी, बड़ डरावना हे, ये रात कारी कारी । कंस के कारागार, बड़ रहिन पहेरेदार, चारो कोती चमुन्दा, खुल्ला नईये एकोद्वार । देवकी वासुदेव पुकारे हे दीनानाथ, अब दुख सहावत नइये करलव सनाथ । एक एक करके छैय लइका मारे कंस, सातवइया घला होगे कइसे अपभ्रंस । आठवईंया के हे बारी कइसे करव तइयारी, ऐखरे बर होय हे आकाषवाणी हे खरारी । मन खिलखिवत हे फेर थोकिन डर्रावत हे, कंस के काल हे के पहिली कस एखरो हाल हे । ओही समय चमके बिजली घटाटोप, निचट अंधियारी के होगे ऊंहा लोप । बिजली अतका के जम्मो के आंखी कान मुंदागे, दमकत बदन चमकत मुकुट चार हाथ वाले आगे । देवकी वासुदेव के हाथ गोड़ के बेड़ी फेकागे, जम्मो पहरेदारमन ल बड़ जोर के निदं आगे । देखत हे देवकी वासुदेव त देखत रहिगे, कतका सुघ्घर हे ओखर रूप मनोहर का कहिबे । चिटक भर म होइस परमपिता के ऊंहला भान, नाना भांति ले करे लगिन ऊंखर यशोगान । तुहीमन सृष्टि के करइवा अव जम्मो जीव के देखइया अव, धरती के भार हरइया अव जीवन नइया के खेवइया अव । मायापति माया देखाके होगे अंतरध्यान,

देश बर हम तो जियन

ये हमर तो देश संगी, घात सुघ्घर ठांव हे । हे हिमालय हा मुकुट कस, धोय सागर पांव हे । फूल बगिया के बने हे, वेष भाषा सब धरम । एक गठरी कस हवन हम, ये हमर आवय मरम ।। देश गांधी के पुजारी, हे अराधक शांति के । बोस नेताजी कहाथे, देवता नव क्रांति के ।। हे भगत शेखर सरीखे, वीर बलिदानी हमर । जूझ के होगे समर मा, जेन मन हा तो अमर ।। खून कतका के गिरे हे, देश के पावन चरण । तब मिले हे मुक्ति हमला, आज ओखर याद करन ।। सोच ऊखर होय पूरा, काम अइसन हम करन । भेट होही गा बड़े ये, देश बर हम तो जियन ।।

दांव मा लगगे पानी

पानी नदियां मा बढ़े, कइसे जाबो पार । भीड़ भरे हे घाट मा, कहां हे डोंगहार ।। कहां हे डोंगहार, जेन हा खेवय डोंगा । रिमझिम हे बरसात, मुड़ी मा छाता चोंगा । जाना बहिनी गांव, तीज बर जोहे रानी । ‘रमेष‘ करत विचार, दांव मा लगगे पानी ।। - रमेशकुमार सिंह चौहान

ददा (कुण्ड़लिया छंद)

रूखवा जइसे बन ददा, देथे हमला ठांव । हमरे बर फूलय फरय, देत मया के छांव ।। देत मया के छांव, जान के लगाय बाजी । कमाय जांगर टोर, हमर हर बाते राजी ।। कह ‘रमेश‘ मन लाय, ददा मोरे बड़ सुखवा । बने रहय छतनार, ददा मोरे जस रूखवा ।। - रमेशकुमार सिंह चौहान

तांका

1. जेन बोलय छत्तीसगढ़ी बोली अड़हा मन ओला अड़हा कहय मरम नई जाने । 2. सावन भादो तन मा आगी लगे गे तै मइके पहिली तीजा पोरा दिल मा मया बारे 3. बादर कारी नाचत छमाछम बरखा रानी बरसे झमाझाम सावन के महिना 4. स्कूल तै जाबे घातेच मजा पाबे आनी बानी के पढ़बे अऊ खाबे सपना तै सजाबे

भोजली गीत

रिमझिम रिमझिम सावन के फुहारे । चंदन छिटा देवंव दाई जम्मो अंग तुहारे ।। तरिया भरे पानी धनहा बाढ़े धाने । जल्दी जल्दी सिरजव दाई राखव हमरे माने ।। नान्हे नान्हे लइका करत हन तोर सेवा । तोरे संग मा दाई आय हे भोले देवा ।। फूल चढ़े पान चढ़े चढ़े नरियर भेला । गोहरावत हन दाई मेटव हमर झमेला ।। -रमेशकुमार सिंह चैहान

करेजा मा महुवा पागे मोर (युगल गीत)

मुच मुच मुचई गोरी तोर करेजा मा महुवा पागे मोर ।     सुन सुन के बोली धनी तोर     तन मन मा नशा छागे मोर । चंदा देख देख लुकावत हे, छोटे बड़े मुॅह बनावत हे, एकसस्सू दमकत, एकसस्सू दमकत, गोरी चेहरा तोर ।। करेजा मा महुवा पागे मोर     बनवारी कस रिझावत हे     मन ले मन ला चोरावत हे,     घातेच मोहत, घातेच मोहत,     सावरिया सूरत तोर ।  तन मन मा नशा छागे मोर मारत हे हिलोर जस लहरा सागर कस कइसन गहरा सिरतुन मा, सिरतुन मा,   अंतस मया गोरी तोर ।।  करेजा मा महुवा पागे मोर     छाय हवय कस बदरा     आंखी समाय जस कजरा     मोरे मन मा, मोरे मन मा     जादू मया तोर ।  तन मन मा नशा छागे मोर मुच मुच मुचई गोरी तोर करेजा मा महुवा पागे मोर ।     सुन सुन के बोली धनी तोर     तन मन मा नशा छागे मोर । मुच मुच मुचई गोरी तोर करेजा मा महुवा पागे मोर ।     सुन सुन के बोली धनी तोर     तन मन मा नशा छागे मोर । -रमेशकुमार सिंह चैहान

मोर छत्तीसगढ़ के कोरा

सरग ले बड़ सुंदर भुईंया, मोर छत्तीसगढ़ के कोरा । दुनिया भर ऐला कहिथे, भैइया धान के कटोरा ।।     मैं कहिथंव ये मोर महतारी ऐ     बड़ मयारू बड़ दुलौरिन     मोर बिपत के संगवारी ऐ     सहूंहे दाई कस पालय पोसय     जेखर मैं तो सरवन कस छोरा संझा बिहनिया माथा नवांव ऐही देवी देवता मोरे दानी हे बर दानी हे,दाई के अचरा के छोरे ।।     मोर छत्तीसगढ़ी भाखा बोली     मन के बोली हिरदय के भाखा     हर बात म हसी ठिठोली     बड़ गुरतुर बड़ मिठास     घुरे जइसे सक्कर के बोरा कोइला अऊ हीरा ला, दाई ढाके हे अपन अचरा बनकठ्ठी दवई अड़बड़, ऐखर गोदी कांदी कचरा     अन्नपूर्णा के मूरत ये हा     धन धान्य बरसावय     श्रमवीर के माता जे हा     लइकामन ल सिरजावय     फिरे ओ तो कछोरा सरग ले बड़ सुंदर भुईंया, मोर छत्तीसगढ़ के कोरा । दुनिया भर ऐला कहिथे, भैइया धान के कटोरा ।। -रमेशकुमार सिंह चौहान

बाबू के ददा हा , दरूहा होगे ना (गीत)

गीत बोली ओखर तो, करूहा होगे ओ बाबू के ददा हा , दरूहा होगे ना । मोरे ओ मयारू, रहिस अड़बड़ ...... पी अई के तो मारे, बइसुरहा होगे ना । रूसे कस डारा, डोलत रहिथे....... बाका ओ जवान, धक धकहा होगे ना । फोकट के गारी, अऊ फोकट के मार......... जीयवं कइसे गोई, धनी झगरहा होगे ना । पिलवा पिलवा लइका, मरवं कइसे........ जीनगी हा मोरे, अब अधमरहा होगे ना । -रमेशकुमार सिंह चौहान

बैरी बादर

ये बैरी बादर, भुलाय काबर, सब जोहत हें, रद्दा तोरे । कतेक ल सताबे, कब तै आबे, पथरावत हे, आंखी मोरे ।। धरती के छाती, सुलगे आगी, बैरी सूरज, दहकत हे । आवत हे सावन, लगे डरावन, पानी बर सब, तरसत हे ।। -रमेशकुमार सिंह चौहान

नाचा पेखन

चल जाबो देखन, नाचा पेखन, कतका सुघ्घर, होवत हे । जम्मो संगी मन, अब्बड़ बन ठन, हमन ल तो, जोहत हे ।। नाचत हे बढि़या, ओ नवगढि़या, परी हा मान, टोरत हे । जोकर के करतुत, हसाथे बहुत, सब्बो झन ला, मोहत हे ।। -रमेशकुमार सिंह चौहान

ये गोरी मोरे

ये गोरी मोरे, मुखड़ा तोरे, चंदा बानी, दमकत हे । जस फुलवा गुलाब, तन के रूआब, चारो कोती, गमकत हे ।। जब रेंगे बनके, तै हर मनके, गोड़ म पैरी, छनकत हे । सुन कोयल बोली, ये हमलोली, मोरे मनवा, बहकत हे ।। -रमेशकुमार सिंह चौहान

दोहा

1. आमा रस कस प्रेम हे, गोही कस हे बैर । गोही तै हर फेक दे, होही मनखे के खैर ।। 2. लालच अइसन हे बला, जेन परे पछताय । फसके मछरी गरी मा, अपन जाने गवाय ।। 3. अपन करम गति भोग बे, भोगे हे भगवान । बिंदा के ओ श्राप ले, बनगे सालिक राम ।। 4. करम बड़े के भाग हा, जोरव ऐखर  ताग । नगदी पइसा कस करम, कोठी जोरे  भाग ।। 5. लाश जरत तै देख के, का सोचे इंसान । ऐखर बारी हे आज गा, काली अपन ल जान ।। -रमेश

तांका

1.   झांक तो सही अपन अंतस ला फेर देखबे दुनिया के गलती कतका उथली हे । 2.   बारी बखरी खेत खार परिया घाट घठौन्धा कुॅंआ अऊ तरिया सरग कस गांव हे । 3.   हो जाथे मया बिना छांटे निमेरे काबर फेर खोजत हस जोही हाथ मा दिल हेरे ।

कोनो गांव नई जांव

हमर ममा गांव मा, होवत हे गा बिहाव । दाई अऊ बाई दुनो, कहत हे जाबो गांव ।। दाई कहे बाबू सुन, मोर ममा के नाती के । घात सुघ्घर आदत, का तोला बतांव ।। वो ही बाबू के बिहाव, होवत हे ग ना आज । मुंह झुंझूल ले जाबो, बाढ़ गे हे तांव ।। तोर सारी दुलौरीन, मोर ममा के ओ नोनी । घेरी घेरी फोन करे, भेजे मया ले बुलांव ।। मोटरा जोर मैं हर, करत हंव श्रृंगार । काल संझकेरहे ले, जाबो जोही ममा गांव ।। सियानीन मोटियारी, टूरा होवय के टूरी । सब्बो ला घाते भाथे, अपनेच ममा गांव ।। एके तारीक म हवे, दुनो कोती के बिहाव । सोच मा परे हवंव, काखर संग मैं जांव ।। दाई संग जाहूं मै ता, बाई ह बड़ रिसाही । गाल मुंह ल फुलेय, करही गा चांव चांव ।। बाई संग कहूं जाहूं, दाई रो रो देही गारी । ये टूरा रोगहा मन, डौकीच ला देथे भाव ।। बड़ मुश्किल हे यार, सुझत नई ये कुछु । काखर संग मैं जांव, काला का कहि मनांव ।। नानपन ले दाई के, घात मया पाय हंव । मन ले कहत हंव, दाई जिनगी के छांव ।। अब तो सुवारी बीना, जिनगी लागे बेमोल । जोही बीना जग सुन्ना, लगे जिनगी के दांव ।। छोड़ नई सकव मैं, दाई बाई दुनो ला तो । बि

मोर नोनी

खेलत घरघुन्दिया, गली खोर मोर नोनी । धुर्रा धुर्रा ले बनाय, घर चारो ओर नोनी ।। बना रंधनही खोली, आनी बानी तै सजाय । रांधे गढ़े के समान, जम्मा जोर जोर नोनी ।। माटी के दिया ह बने, तोर सगली भतली । खेल खेल म चुरय, साग भात तोर नोनी ।। सेकत चुपरत हे, लइका कस पुतरी । सजावत सवारत, चेंदरा के कोर नोनी ।। अक्ती के संझा बेरा, अंगना गाढ़े मड़वा । नेवता के चना दार, बांटे थोर थोर नोनी ।। पुतरा पुतरी के हे, आजे तो दाई बिहाव । दे हव ना टिकावन, कहे घोर घोर नोनी ।। कका ददा बबा घला, आवा ना तीर मा । दू बीजा चाऊर टिक, कहय गा तोर नोनी ।। माईलोगीन के बूता, ममता अऊ दुलार । नारीत्व के ये स्कूल मा, रोज पढ़े मोर नोनी

बनिहार

करय काम बनिहार हा, पसीना चूचवाय । अपन पेट ला वो भरय, दू पइसा म भुलाय ।। दू पइसा म भुलाय, अपन घर म खुश रहय रे । जग के चिंता छोड़, जगे बर वो जीयय रे ।। कइसे कहय ‘रमेश‘, रोज जीयय अऊ मरय । बिसार खुद के काम, रोज तोरे काम करय ।।

नवा नवा सोच ले

हम तो लईका संगी, आन नवा जमाना के । विकास गाथा गढ़बो, नवा नवा सोच ले ।। ऊॅच नीच के गड्ठा ला, आज हमन पाटबो । नवा रद्दा ला गढ़बो, नवा नवा सोच ले ।। जात पात धरम के, आगी तो दहकत हे । शिक्षा के पानी डारबो, नवा नवा सोच ले ।। भ्रष्टाचार के आंधी ला, रोकबो छाती तान के । ये देश ला चमकाबो, नवा नवा सोच ले ।। दारू मंद के चक्कर, हमला नई पड़ना । नशा के जाल तोड़बो, नवा नवा सोच ले ।। जवानी के जोश मा, ज्वार भाटा उठत हे । दुश्मन ला खदेड़बो, नवा नवा सोच ले ।। हर भाषा हमार हे, हर प्रांत हा हमार । भाषा प्रांत ला उठाबो, नवा नवा सोच ले ।। नवा तकनीक के रे, हन हमूमन धनी । तिरंगा ला फहराबो, नवा नवा सोच ले ।।

होली के उमंग

होली के उमंग (‍त्रिभंगी छंद) हे होली उमंग, धरे सब रंग, आनी बानी,  खुुुुशी भरे । ले के पिचकारी, सबो दुवारी, लइका ताने, हाथ धरे ।। मल दे गुलाल, हवे रे गाल, कोरा कोरा, जेन हवे। वो करे तंग, मया के रंग, तन मन तोरे, मोर हवे ।।

मारी डारे

तै संगी मोला, तरसा चोला, मारी डारे, काबर ना । गे कबके विदेश, भेजे संदेश, एको पाती, चाकर ना ।। जे दिन ले आएं, तै ना भाएं, एको चिटीक, मोला रे । तै पइसा होगे, किस्मत सोगे, गे उमर बीत, भोला रे ।।

भुजंगप्रयात छन्द

         भुजंगप्रयात छन्द 1.    कहां मोर हंसा सुवा हा उड़े गा ।     कहे कोन संगी हवा मा जरे गा ।     भये ठाठ तो ठाट आखीर काया ।     तभो जीव हा फेर ले फसे माया । 2.    मरे हे कहां गा कभू तोर आत्मा ।     कहे श्री कभू होय ना जीव खात्मा।।     नवा रे नवा वो धरे फेर चोला ।     करे देह के मोह ला त्याग भोला ।। 3.    चना दार ला डार रांघे करेला ।     तिजा तै रहे गोइ जीये मरेला ।।     धरे लूगरा तोर दाई ह देवे ।     ददा संग मांगे तभे च लेवे ।। 4.    नवा रे जमाना नवा हे लईका ।     नवा हे मकाने नवा हे फईका ।।     धरे खाय पाऊच रे देख लैला ।     पिये दारू माते बने देख छैला ।।

कंचन काया हवय तोर

कंचन काया हवय  तोर । लजागे चंदा सुन सोर । कतका सुघ्घर तोर गोठ । सुन कोयल करे मन छोट । चुन्दी कारी तोर देख । घटा बादर होगे पेख ।         पेख -पेखन - खिलौना पारे पाटी बने मांग । पाछू फूल गजरा टांग । मांगमोती आघू ओर । सुरूज जस चमके खोर । माथा टिकली गोल गोल । समा गे जम्मा भूगोल । नाक नथनी झुमका कान । आंखी तोर तीर कमान । ओट तोरे फूल गुलाब । दे गोइ अनमोल खिताब । सुराही गर्दन श्रृंगार । पहिरे तै सोनहा हार । लाली लुगरा डारे खांध । कनिहा म करधनिया बांध । रून झुन करे साटी गोड़ । सुन देखय सब मुह ल मोड़ । तोरे सोलहो सिंगार । मुरदा देही जीव डार । मेनका उर्वशी सबो फेल । हवय रूप मा जादू खेल । फर्सुत म विधाता गढ़े । देखे बर देवता ह खड़े । मोला तै कनेखी देख । मया कर हू मै अनलेख । देख तोर एक मुस्कान । दे दू हूं गोइ अपन जान ।

जीये बर जरूरी हवय (कुण्डलि)

जीये बर जरूरी हवय, हमन ला तीन बात । मुड़ मा होवय छांव गा, मिलय पेट भर भात ।। मिलय पेट भर भात, बदन मा होवय कपड़ा । पति पत्नि संग होय, रूढ़े मनाय के लफड़ा ।। संगी मन के प्यार, सबो दुख ल लेथे पिये । ददा दाई के दुलार, देख हमरे बर जीये ।।

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